पथ के साथी

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Wednesday, April 22, 2015

कविता



ख़लील ज़िब्रान
(अनुवाद : सुकेश साहनी )

एथेन्स के राजमार्ग पर दो कवियों की भेंट हो गई। मिलकर दोनों को खुशी हुई।
एक कवि ने दूसरे से पूछा, ‘‘इधर नया क्या लिखा है?’’
दूसरे कवि ने गर्व से कहा, ‘‘मैंने अभी हाल ही में एक कविता लिखी है जो मेरी सभी रचनाओं में श्रेष्ठ है। मुझे लगता है यह ग्रीक में लिखी गई सभी कविताओं से भी श्रेष्ठ है। यह कविता मेरे गुरू की स्तुति में लिखी गई है।’’
तब उसने अपने कुरते से पाण्डुलिपि निकालते हुए कहा, ‘‘अरे देखो, यह तो मेरे पास ही है। इसे सुनकर मुझे प्रसन्नता होगी। चलो, उस पेड़ की छाया में बैठते हैं।’’
कवि ने अपनी रचना पढ़ी, जो काफी लम्बी थी।
दूसरे कवि ने नम्रतापूर्वक प्रतिक्रिया दी, ‘‘वह महान रचना है, कालजयी रचना है। इससे आपको बहुत प्रसिद्ध मिलेगी।’’
पहले कवि ने सपाट स्वर में पूछा, ‘‘तुम आजकल क्या लिख रहे हो?’’
दूसरे ने उत्तर दिया, ‘‘बहुत थोड़ा लिखा है मैंने। केवल आठ लाइनेंएक बाग में खेल रहे बच्चे की स्मृति में।’’ उसने अपनी रचना सुनाई।
पहले कवि ने कहा, ‘‘ठीक ही है, ज्यादा बुरी तो नहींे है।’’
आज दो हज़ार वर्ष बीत जाने पर भी उस कवि की आठ पंक्तियाँ प्रत्येक भाषा में बड़े प्रेम से पढ़ी जाती हैं।
दूसरे कवि की रचना शताब्दियों से पुस्तकालयों और विद्वानों की अलमारियों में सुरक्षित अवश्य रही है पर उसे कोई नहीं पढ़ता।

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Saturday, November 24, 2007

ग्रहण

सुकेश साहनी

पापा राहुल कह रहा था कि आज तीन बजे---” विक्की ने बताना चाहा ।“चुपचाप पढ़ो!” उन्होंने अखबार से नजरें हटाए बिना कहा, “पढ़ाई के समय बातचीत बिल्कुल बंद !”“पापा कितने बज गए?” थोड़ी देर बाद विक्की ने पूछा।“तुम्हारा मन पढ़ाई में क्यों नहीं लगता? क्या ऊटपटांग सोचते रहते हो? मन लगाकर पढ़ाई करो, नहीं तो मुझसे पिट जाओगे।”विक्की ने नजरें पुस्तक में गड़ा दीं ।“पापा! अचानक इतना अँधेरा क्यों हों गया है?” विक्की ने ख़िड़की से बाहर ख़ुले आसमान को एकटक देख़ते हुए हैरानी से पूछा। अभी शाम भी नहीं हुई है और आसमान में बादल भी नहीं हैं! राहुल कह रहा था---“विक्की!!” वे गुस्से में बोले-ढेर सारा होमवर्क पड़ा है और तुम एक पाठ में ही अटके हो!”“पापा, बाहर इतना अँधेरा---” उसने कहना चाहा ।“अँधेरा लग रहा है तो मैं लाइट जलाए देता हूँ। पाँच मिनट में पाठ याद न हुआ, तो मैं तुम्हारे साथ सुलूक करता हूँ?”विक्की सहम गया। वह ज़ोर-ज़ोर से याद करने लगा, “सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाने से सूर्यग्रहण होता है---सूर्य और पृथ्वी के बीच---”

मैं कैसे पढ़ूँ ?

सुकेश साहनी
पूरे घर में मुर्दनी छा गई थी। माँ के कमरे के बाहर सिर पर हाथ रखकर बैठी उदास दाई माँ---रो-रोकर थक चुकी माँ के पास चुपचाप बैठी गाँव की औरतें । सफेद कपड़े में लिपटे गुड्डे के शव को हाथों में उठाए पिताजी को उसने पहली बार रोते देखा था----“शुचि!” टीचर की कठोर आवाज़ से मस्तिष्क में दौड़ रही घटनाओं की रील कट गई और वह हड़बड़ा कर खड़ी हो गई।“तुम्हारा ध्यान किधर है? मैं क्या पढ़ा रही थी----बोलो?” वह घबरा गई। पूरी क्लास में सभी उसे देख रहे थे।“बोलो!” टीचर उसके बिल्कुल पास आ गई।“भगवान ने बच्चा वापस ले लिया----।” मारे डर के मुँह से बस इतना ही निकल सका ।कुछ बच्चे खी-खी कर हँसने लगे। टीचर का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा।“स्टैंड अप आन द बैंच !”वह चुपचाप बैंच पर खड़ी हो गई। उसने सोचा--- ये सब हँस क्यों रहे हैं, माँ-पिताजी, सभी तो रोये थे-यहाँ तक कि दूध वाला और रिक्शेवाला भी बच्चे के बारे में सुनकर उदास हो गए थे और उससे कुछ अधिक ही प्यार से पेश आए थे। वह ब्लैक-बोर्ड पर टकटकी लगाए थी, जहाँ उसे माँ के बगल में लेटा प्यारा-सा बच्चा दिखाई दे रहा था । हँसते हुए पिताजी ने गुड्डे को उसकी नन्हीं बाँहों में दे दिया था। कितनी खुश थी वह!“टू प्लस-फाइव-कितने हुए?” टीचर बच्चों से पूछ रही थी ।शुचि के जी में आया कि टीचर दीदी से पूछे जब भगवान ने गुडडे को वापस ही लेना था तो फिर दिया ही क्यों था? उसकी आँखें डबडबा गईं। सफेद कपड़े में लिपटा गुड्डे का शव उसकी आँखों के आगे घूम रहा था। इस दफा टीचर उसी से पूछ रही थी । उसने ध्यान से ब्लैक-बोर्ड की ओर देखा। उसे लगा ब्लैक-बोर्ड भी गुड्डे के शव पर लिपटे कपड़े की तरह सफेद रंग का हो गया है। उसे टीचर दीदी पर गुस्सा आया । सफेद बोर्ड पर सफेद चाक से लिखे को भला वह कैसे पढ़े?
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