डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
हमको तो अब भा गया ,प्रभु तुम्हारा नाम ।
कुण्डलियाँ लिख -लिख करूँ ,नित्य नाम का गान ॥
नित्य नाम का गान ,सुनो तुम बात हमारी ।
राखो सँभल, सँवार ,वस्तु न जाएँ बिसारी ॥
कान्हा भूलो मुकुट,न भूले मुरली तुमको
कान्हा भूलो मुकुट,न भूले मुरली तुमको
जिसकी मीठी तान ,लुभाए निश -दिन हमको ॥
2
जीवन में उत्साह से ,सदा रहें भरपूर ।
निर्मलता मन में रहे ,रहें कलुष से दूर ॥
रहें कलुष से दूर ,दिलों में कमल खिलें हों ।
हों खुशियों के हार ,तार से तार मिलें हों ॥
दिशा -दिशा हो धवल ,धूप आशा की मन में ।
रहें सदा परिपूर्ण ,उमंगित इस जीवन में ॥
3
नारी ही जब बोलकर ,अपना मोल लगाय ।
क्यों न इस बाजार में, बिना मोल बिक जाय ॥
बिना मोल बिक जाय ,घटे मर्यादा ऐसे ।
हो पूनम का चाँद, गहन में विपदा जैसे ॥
पाए अपना मान ,गगन में चमक है भारी ।
तज मर्यादा चैन, कभी ना पाए नारी । ।
4
इक रोटी से हाथ की ,मुँदरी पूछे बात ।
तू क्यों फूली -सी फिरे ,जले सुकोमल गात ॥
जले सुकोमल गात ,अंत निश्चित है तेरा ।
पर छुटकी के थाल, लगाए हँस कर फेरा ॥
दे मुख को मुस्कान ,उम्र तेरी यह छोटी ।
जीवन का सन्देश ,सुनाती है इक रोटी ॥
5
5
राजनीति का नीति से ,यूँ रिश्ता अनमोल ।
इक वाणी प्रपंच दिखे ,दूजी बोले तोल ।
दूजी बोले तोल ,करे नित परहित सब का ।
सम दृष्टि समभाव ,रखे है मन में रब का॥
भले करें सब गान ,नीति पावन प्रतीति का
छोडे़ त्याग-विचार ,गुणीजन राजनीति का ।।
6
भूले से भगवान ने ,मन में किया विचार ।
खुद रह कर फिर साथ में ,देखें यह संसार ।।
देखें यह संसार ,यहाँ कैसी है माया ।।
किया भला क्या भेंट ,भक्त ने क्या -क्या पाया ।।
चले उठाने मुकुट ,मुरलिया जब झूले से ।
कुछ ना आया हाथ ,खड़े हैं अब भूले- से ॥
7
राधा की पायल बनूँ, या बाँसुरिया ,श्याम ,
दोंनों के मन में रहूँ, इच्छा यह अभिराम ।
इच्छा यह् अभिराम ,बजूँगी वृन्दावन में ,
दो बाँसुरिया देख , दुखी हों राधा मन में ।
हो उनको संताप , मिलेगा सुख बस आधा ,
कान्हा के मन वास , चरण में रख लें राधा ।
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