पथ के साथी

Tuesday, October 25, 2016

680-शंकर छंद, प्रमाणिका छन्द



1-शंकर छंद
1-ज्योत्स्ना प्रदीप
1
पीड़ा तो इस जीवन में हम सब ही पाते हैं।
कितनें अधर हैं जो पीड़ा में भी मुस्काते हैं ।।
मन को घन-सा बनाना है।
दुख  मे वो  गा  रहा जबकि उसको मिट जाना है।। 
-0-
2-अनिता मण्डा
जिनको गाकर मनवा झूमे गीत कहाँ हैं वे।
दुनिया के मेले में खोये मीत कहाँ हैं वे।
घुला मन में रंग पीर का।
आँखों से बहता रेला सा आ गया नीर का।
-0-
2-प्रमाणिका छन्द
1-अनिता मण्डा
1
उजास भोर का मिला
सुहास- सा खिला- खिला।
सुवास वात में घुली।
उदासियाँ सभी धुली।
2
उतार थे ,चढ़ाव थे
मिले कई अभाव थे।
प्रयास साध पाँव में।
रुके न धूप छाँव में।
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2-अनिता ललित
1
खिली कली न प्यार की
न आस ही बहार की 
शिकायतें नहीं मुझे
जले नहीं , दिये बुझे।
2
घड़ी -कड़ी न हारिए
बहार को पुकारिए
न अश्क -संग टूटना
न ख़्वाब साथ जूझना ।।
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3-ज्योत्स्ना प्रदीप
1
सिया बड़ी उदास है ।
न आस है न श्वास है।।
अशोक के तले रही 
व्यथा  कहाँ कभी कही ।।
-0-
4- सुनीता काम्बोज
1
उठी -गिरी रुकी नहीं
हवा चली, झुकी नहीं
मिली तभी बहार है
मिला मुझे करार है
2
अधीर गोपियाँ बड़ी
निहारती घड़ी घड़ी
सुगन्ध प्रेम की लिये
जला रही नए दिये
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