पथ के साथी

Wednesday, July 22, 2020

1018-आँसू मनमीत हैं


1-आँसू मनमीत हैं
डॉ.सुरंगमा यादव

दर्द की पनाह में
जिंदगी गुज़र ग
जिस तरफ़ बढ़े कदम
रोशनी सिहर ग

स्वप्न टूटने लगे
नैन भीगने लगे
प्रीत को पुकारते
चाँद रात ढल ग

कल कभी आगा
फ़ासला मिटागा
हश्र ये हुआ मगर
राह ही बदल ग

तेरी ये बेरुख़ी
मुझे रास आ ग
जीत की न कड़ी
हार आज बन ग

आँसू मन-मीत हैं
बनते ये गीत हैं
हम  न होंगे तो क्या
भोर न खिल गई।
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2-मुझे जिसने छाँव दी उम्र भर
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
[पिता को समर्पित एक कविता, जो मैंने उस वक्त लिखी थी जब वे हॉस्पिटल के आई सी यू में अपनी ज़िंदगी की आखिरी साँसें गिन रहे थे]


मुझे जिसने छाँव दी उम्र भर

वो पेड़ खोखला हो चला है
यक़ीनन
मगर वक़्त की आँधी की मार से
तब बचके कहाँ जाऊँगी
मैं मों की धूप में
फिर छाँव की आस लिये
कहाँ जाऊँगी
जड़ें माना कमज़ोर हो चली हैं
हारी थकी टहनियाँ झुकने लगी हैं
ये देख दुख का भार बढ़ रहा है
साँस मेरी रुकने लगी है
सोच रही हूँ कि
ये पेड़
जो हवा के एक झोंके से
कहीं गिर जागा
ताउम्र जिसके साये में रही
रूह ये सह न सकेगी तूफ़ा
मन थपेड़ों की मार से मर जागा
ज़िंदगी पूछ रही है
तुझसे या रब!
जब दुख का सूरज होगा सर पर
तब बिना उस शजर के
कैसे कटेगा सफ़र!
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