सुदर्शन रत्नाकर
खुली खिड़की से उड़ कर
वह अंदर आया
मैंने पकड़ कर सहलाया तो
वह सिमट गया ।
मेरी हथेली पर रखे दाने
चोंच भर खा गया ।
मेरी आँखों में उसने
प्यार का समन्दर देखा
और उड़ना भूल गया
मैं उसे फिर सहलाऊँगी
और
-दोनों
हाथों
से
उड़ाऊँगी
वह उड़ तो जाएगा
पर कल फिर आएगा
दाना खाएगा
उड़ना भूल जाएगा ।
वह रोज़ ऐसा करेगा
खुली खिड़की से आएगा
छुअन का एहसास करेगा
सिमटेगा
खाएगा ।
वह मेरे हाथों के स्पर्श को एहसासता है
वह मेरे प्यार की भाषा समझता है
वह परिन्दा है
वह सब जानता है
इन्सान नहीं
जो प्यार की गहराई को नहीं समझता
जो अपनों को भूल
अपने लिए जीता है
और
अवसर मिलते ही
उड़ जाता है
कभी लौट कर न आने के लिए
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