पथ के साथी

Friday, February 4, 2022

1183

 

 

1-अफसाने -भीकम सिंह 

 

भोर-दोपहर

गोधूलि और रात

सभी के अफसाने 

 

कुछ सुलगते रहते 

कुछ गूँजकर

विस्मित करते 

 

कुछ दिलों में 

कुछ को हम

जूतों पे रखते 

 

कुछ पिस्सुओं-से

चिपके रहते 

कुछ शिशुओं-से रोते 

 

कुछ अछूत

खीज़ पैदा करते

कुछ लम्बे चुम्बन भरते 

 

कुछ धर्म उकेरते

कुछ मुँह फेरते

निरपेक्ष दिखा करते 

 

कुछ उलझ

स्वार्थ की डोर से 

बेबसी में सुलझा करते 

 

कुछ क्षितिज पार के 

असीमित 

कुछ गिन लो पोर  पे

 

अफसाने -

हमारे 

और आपके 

-0-

2-शारदे जी की वंदना -परमजीत कौर 'रीत

 

ओ! माँ! वाणी , विनती सुन लो, द्वार तुम्हारे आए हैं

बुद्धि विवेक की याचना करने हाथ पसारे आए हैं

 

हे! करुणा की सागर मैया  दया दृष्टि हम पर डालो 

ज्ञान भरी लहरों को पाने मूढ़ किनारे आए हैं

 

हर दुर्गुण से दूर रहें और सद्गुण हर  अपनाएँ

बस इतनी सी कामना लेकर लाल तुम्हारे आए हैं

 

सन्मार्ग पे चलते जाएँ डगमग न हों पाँव कभी

ऊबड़-खाबड़ राहों पर बस तेरे सहारे आए हैं

 

दोष पराये ढूँढके हँसना जगती की है 'रीत' ये माँ !

तव चरणों की गंगा में  तन-मन को पखारे आए हैं

-0-
3-क्यों रोता सारी रैन है-  निधि भार्गव मानवी

 

 

बोल मेरे व्याकुल मनुआ तू , इतना क्यों बेचैन है ।

दिन भर खोया खोया रहता,रोता सारी रैन है ।।

 

सबको सब कुछ नहीं मिलता इस मायावी संसार में

सदा उजाले न रहते रे, कुदरत के व्यवहार में

होंठ मचलते कुछ कहने को, सहमें सहमे बैन हैं

दिन भर खोया-खोया रहता, रोता सारी रैन है

 

मनचाहा यदि मिल भी गया रे, तो ही क्या हो जाएगा।

हाथ  पसारे  आया  था  तू, हाथ पसारे जाएगा।।

एक घड़ी को भी रे पगले, क्यों न तुझको चैन है

दिनभर खोया-खोया रहता, रोता सारी रैन है ।।

 

कर्म का लेखा अरे अभागे,जैसे-तैसे काट ले ।

अपने जीवन की ये खाई, किसी जुगत से पाट ले ।।

किस उलझन में फँसा हुआ तू,भीगे-भीगे नैन हैं ।

दिन भर खोया खोया रहता,रोता सारी रैन है ।।

 

जो मिला जितना भी मिला उतने में ही संतोष कर ।

कोसा मत कर परिस्थितियों को, ईश्वर पे मत दोष धर ।

पडे़ भोगनी पी बावरे, विधना की यह दैन है ।

दिन भर खोया खोया रहता,रोता सारी रैन है ।।

-0-