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रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सागर में सब आँसू
बहाकर आ गया ।
सैलाब रौशनी का
जगाकर आ गया ।
किरनों के उजले रथ
पर होकर सवार ,
गागर सुधारस का
छलकाकर आ गया।
पर्वतों- घाटियों में
उछलता –कूदता ,
रूप-नदी में गोता
लगाकर आ गया ।
गुनगुनी धूप बनकर
आँगन में उतरा ;
नव वर्ष सब दूरियाँ
मिटाकर आ गया ।
…………………………31-12-2007