पथ के साथी

Wednesday, October 19, 2011

धरती मिली (चोका)


धरती मिली
गगन से जब भी
पुलक उठी
क्षितिज हरषाया .
बदली मिली
पहाड़ों के गले
बरस गई
सावन लहराया.
ओ मेरे मीत !
मिलना तेरा मेरा
मिले हैं जैसे
नदिया का किनारा
मन क्यों घबराया ?
-0- 
'कमला'