कमला निखुर्पा
मैं पहाड़न
घास मेरी सहेली
पेड़ों से प्यार ।
वो माटी का आँगन
भुलाऊँ कैसे !
दादी की गुनगुन ?
कोंदों की रोटी
नमक संग खाऊँ
वो भी ना मिले
तो मैं भूखी सो जाऊँ ।
खेत जंगल
निराली पाठशाला ।
मेरा तो बस्ता
घास का भारी पूला ।
मेरी कलम
कुदाल औ दराती ।
दिन भर भटकूँ
फिसलूँ गिरूँ
चोट खाके
मुस्काऊँ
उफ़ ना करूँ
नंगे पाँव ही
चढ़नी है चढ़ाई,
आँसू को पोंछ
लड़नी है लड़ाई ।
सूने है खेत
भूखी गैया ने
खड़े किए हैं कान ।
पत्थर- सा कठोर
है भाग्य मेरा ,
फूलों -से भी कोमल
है गीत मेरा ।
हुई बड़ी मैं
नजरों में गड़ी मैं
पलकें ना उठाऊँ ।
खुद को छुपा
आँचल ना गिराऊँ।
मेंहदी रचे
नाजुक गोरे हाथ।
पराई हुई
बाबुल की गली ।
हुई विदा मैं
बाबा गंगा नहाए
आँसू में भीगी
मेरी माँ दुखियारी ।
तीज त्योहार
आए बुलाने
भाई
भाई को देख
कितना हरषाई!!
दुखड़ा भूल
अखियाँ
मुसकाई
एक पल में
बस एक पल में
बचपन जी आई ।
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