डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
मधुर-मधुर ये गाया करती ,
सुन्दर छंद सुनाया करती ।
तुम कान्हा हो तो मधुबन में ,
रसमय रास रचाया करती ।
शिवमय होकर पतित-पावनी ,
गंगा -सी बह जाया करती ।
राम ,रमा-पति कण्ठ लगाते ,
मुग्धा बहुत लजाया करती ।
चाहत थी जो तुम छू लेते ,
कलियों- सी महकाया करती ।
तुम बिन गीत-ग़ज़ल में कैसे ,
इतना रस बरसाया करती ।
अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,
वरना कलम रुलाया करती ।