पथ के साथी

Thursday, September 4, 2008

शिक्षक-दिवस



शिक्षक-दिवस
कबीर ने कहा है-
गुरु पारस को अन्तरो ,जानत है सब सन्त वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महन्त॥
-गुरु और पारस पत्थर में क्या अन्तर है ,इस बात को सब सन्त जानते हैं ।पारस लोहे को कंचन बना देता लोहे को पारस नहीं बना सकता ;लेकिन गुरु शिष्य
को अपने समान महान बनाने का विशिष्ट कार्य करता है
जो गुरु बसै बनारसी ,सीष समुन्दर तीर। एक पलक बिसरे नहीं ,जो गुण होय शरीर
यदि गुरु बनारस में निवास करता हो और शिष्य समुद्र के निकट रहता हो तो भी शिष्य गुरु को एक पल के लिए भी नहीं भूल सकता यदि उसके शरीर में गुरु के
गुण होंगे
जाका गुरु है आँधरा , चेला खरा निरंध अन्धे को अन्धा मिला,पड़ा काल के फन्द
जिसका गुरु विवेकहीन है वह शिष्य महा मूर्ख ही होगा ।यह तो अन्धे को अन्धा मिलने जैसा काम हुआ ।इस तरह के गुरु शिष्य काल के फन्दे में ही फँसेंगे ।उनका कल्याण असम्भव है
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- जो गुरु अपने शिष्यों को अपनी सन्तान की तरह प्यार करते हैं ,जो गुरु
अपने शिष्य की उन्नति में प्रसन्न और दुख में सही रास्ता दिखाते हैं;वे
सचमुच धन्य हैं ।जो गुरु अपने शिष्यों का हित नहीं सोचते,जो अपने शिष्यों
की पीड़ा महसूस नहीं करते बल्कि पीड़ित करते हैं उनसे बढ़कर पापी इस संसार
में कोई नहीं हो सकता ।
प्रस्तुति :-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'