पथ के साथी

Tuesday, January 31, 2017

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बनता वही कबीर
डॉ.योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’

जिसने झेले दुःख जीवन में,जिसने सह ली पीर!
वही  बनी  है मीरा जग में, बनता  वही  कबीर!!
       दुःख अपना लेता है जिसको,
             कालजयी वह बन जाता है!
                   
अँधियारों से जो भी जूझा,
                         वो नया स
वेरा लाता है!!

कर्म-मन्त्र से खींची जाती, जग में नई लकीर!
वही बनी है मीरा जग में,  बनता  वही  कबीर!!
        सेवा-अमृत जो चख लेता,
              ईश्वर को वो पा लेता है!
                   सारे जग की पीड़ा लेकर,
                          सब को खुशि
याँ देता है!!

धनवानों से ऊँचा होता, बिरला कोई फ़क़ीर!
वही बनी है मीरा जग में, बनता वही कबीर!!
          देह - देह से भिन्न भले हो,
                आत्मरूप तो सब होते हैं!
                      जिनकी पीड़ा हर लेते हम,
                             बस वही चैन से सोते हैं!!

मानव-जन्म अगर पाया है,छोडो एक नज़ीर!
वही बनी है मीरा जग में, बनता  वही  कबीर!!
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पूर्व प्राचार्य,74/3, न्यू नेहरू नगर,रूड़की-247667
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