पथ के साथी

Tuesday, March 30, 2021

1066

  1-कवि जो कुछ लिखता है 

शिवानन्द सहयोगी

 

कवि जो कुछ लिखता है, वह


भाषा की सम्पति है।

 मुँह से निकले हर अक्षर की 

कोमल काया है,

रचनाओं के उठते पुल का 

मंथन पाया है,

पीड़ा की उमड़ी लहरों की 

भावित पंगति है ।

 

भूली बिसरी यादों की छत 

ईंट सुहानी है,

शब्दों के संवादों की यह 

नई कहानी है,

यह सामाजिक  घटनाक्रम की 

छाया सप्रति है ।

 

आसमान का पूर्व क्षितिज है 

सूरज का रथ है,

भावों की यात्राओं की वह

पगडण्डी, पथ है,

ध्वनि-तुरही के नसतरंग की,

स्नेहिल संगति है ।

 

शब्दावलियों के गमलों का 

घेरा, यह थाला,

अनुभव के अनुषंगों की है,

गुथी हुई माला,

वाणी के लय ताल छंद की,

अनुपद दंपती है ।

-0-

2-लबों पे फूल ( ग़ज़ल)

[ ( ग़ज़ल) से पूर्व दिए गए शीर्षक को क्लिक करके आप इस ग़ज़ल को सुन सकते हैं 'लबों पे फूल लिंक को

मेघा राठी

 


लबों पे फूल मुहब्बत के वो खिलाता है

ग़ज़ल समझ के मुझे रोज़ गुनगुनाता है

 

मिलूं जो उससे महक जाती हैं फ़िज़ाएँ भी

वो मुझसे मिलता है तो खुशबुएँ लुटाता है

 

अंधेरे रास नहीं आते हिज्र के उसको

चिराग इसलिए वो वस्ल के जलाता है

 

शराब हो गई हैं मिलके उससे सांसें अब

वो घूंट - घूंट करके मुझे पीता जाता है

 

खमोश लब हों मगर गुफ़्तगू भी होती रहे

जब इश्क होता है तब ये हुनर भी आता है

 

मेघा राठी, ई -2, पंजाबी बाग, रायसेन रोड भोपाल, म. प्र - 462023

3-अँधेरे मुझसे भय खाने लगे

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

 

भोर के सूर्य की


मैंने जब-जब अभिवंदना की

तब-तब आशीष-स्वरूप
मेरी झोली में
आ गिरीं
कुछ स्वर्णिम-रश्मियाँ
गोद हुई उजली, निखर गई
रौशनी कण-कण में बिखर गई
दिन जगमगाता हुआ
प्रकाश-गीत गाता हुआ
झूमा औ नाचा
यकायक
संध्या-प्रस्थान पर
तम से भय खाता हुआ
मन थर्राता हुआ
और फिर
मेरे अंतस् में उगा एक सूर्य
शनैः-शनैः असंख्य रश्मिपुंज
खिलखिलाने लगे हैं
अँधेरे अब मुझसे भय खाने लगे हैं।

-0-

4-प्रीति अग्रवाल

1.
भूल जाने की आदत
गज़ब ढा गई.....

तुम तो याद हो
,
फिर सितम क्यों नहीं!
2.
अभी भी तुम में,
'तुम्हीं' है बहुत.....
बात यूँ न बनेगी,
हम,
'हम' कैसे होंगे!
3.
बेकार की बहस है,
बेकार है दलील...
कानून बिक चुका है,
बेकार है अपील!
4.
मुस्कुराती रहूँ
और कुछ न कहूँ....
यूँ कब तक लबों को,
भला मैं सिलूँ....!
5.
गलियाँ इश्क की, हैं
सकरी बहुत..…
'तेरे' 'मेरे' की गुंजाइश,
इनमें नहीं!
6.
कभी रूठें हम,
कोई हमको मनाए...
छोटी सी हसरत,
जनम बीता जाए......!
7.
तड़प रहा है दिल,
दीदार को तेरे.....
जाने,
कितना इंतज़ार,
मुक्कदर में है मेरे....।
8.
महब्बत करने वाले दिल,
बहुत ही खास होते हैं....
चाहे,
फासले मीलों के,
फिर भी पास होते हैं...!
9.
धीमें धीमें सुलगते हैं
सीने में जो.....
अधूरी ख्वाहिशों, के
अंगार हैं.....!
10.
प्यार करना तो आता है
सब को मगर...
निभाने के शौकीन,
कुछ एक हैं....!
11.
जीने के बहाने
लाखों थे,
जीना तुझको
आया ही नहीं......
बस बहना था
दरिया की तरह,
तू वो भी क्यों ,
कर पाया नहीं.....?
-0-

Monday, March 29, 2021

1065- उतर स्वर्ग से आ गई

 

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1

चुम्बन से पलकें सजेंचमके ऊँचा भाल।

अधरों  का जो रस मिले, हार मान ले काल।

2

इन हथेलियों में छुपा, कर्मठता का सार।

रस प्लावित अंतर हुआ, चूम इन्हें  हर बार।

3


खुशबू फूलों की रची
हर करतल में आज

इन हाथों को चूमकर, मिला प्यार का राज।

4

अधरों से था लिख दियाकरतल पर जब  प्यार।

सरस आज तक प्राण हैं, पाकर वह उपहार।

5

चूम- चूमकर मैं लिखूँइन हाथों में प्रीत।

रेखाएँ दमके सभी,  पाकरके मनमीत।

6

फिर से आकरके मिलो, जैसे नीर- तरंग।

उर की तृष्णा भी मिटे, भीग उठें सब अंग।

7

कहाँ लगे तुम ढूँढने, इन हाथों की रेख।

कर्मठ हाथों ने लिखे, चट्टानों पर लेख।

8

पत्थर तोड़े बिन थके, तब पी पाए नीर।

इसलिए तो जानतेक्या होती है पीर।

9

आएँ लाखों आँधियाँ, घिर आएँ  तूफान।

रुकना सीखा हैं नहींइतना लो तुम जान।

10

सौरभ उमड़े आँगनापथ में हो उजियार।

आशीषों का छत्र होतेरे सिर हर बार।

11

तेरे सुख में साँझ हैतेरे सुख में भोर।

पीर उठे तेरे हियेम दुखते मन के छोर।

12

पता नहीं किस यक्ष ने, दिया हमें अभिशाप।

तुम्हें पुकारूँ मैं नहीं, मुझको भी न आप।।

13

रूप तुम्हारा देखके, जड़, चेतन हैरान।

उतर स्वर्ग से आ गई, बनकरके उपमान।।

Sunday, March 28, 2021

1064

 

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

 अंकुर फूटे आस के

मुखड़ा हुआ अबीर लाज से,


अंकुर फूटे आस के
,

जंगल में भी रंग बरसे हैं,

दहके फूल पलाश के। 

मादकता में आम डाल  की,

झुककर हुई विभोर है,

कोयल लिखती प्रेम की पाती,

बाँचे मादक भोर है। 

खुशबू गाती गीत प्यार के,

भौरों की गुंजार है ,

सरसों ने भी ली अँगड़ाई ,

पोर-पोर में प्यार है। 

मौसम पर  मादकता छाई ,

किसको अपना होश है,

धरती डूबी है मस्ती में ,

फागुन का यह जोश है।

-0-

2-फगुनिया भोर 

विभा  रश्मि 

 

सिंदूरी डिबिया 

बिखर गई

रंग गई नीला अम्बर ,

तरबूज़ की रसीली फाँक थामे 

कितना भोला - भला सा लगा 

गुलाबी कपोलों में फागुन 

 

आगंतुक खग -वृन्दों के झुंड

तलैया -तट के

वृक्षों की शाख़ों पे बैठ

कलरव करते  -

कानों में माधुर्य रस घोलते रहे ,

वन में घूम -घूम कर मटराया 

घुमक्कड़ पवन ।

 

उदधि की चंचल तरंगों ने

मृदुल थपकियाँ  देकर

तट के कंकड़ों 

और बलुका कणों  पर 

उत्सवी गीत लिखे 

देख सखी ! फाग सजे ।

 

'भोर' फाग की 

आत्म विभोर हो -

सूर्य से माँग लाई भाँग ।

और

हौले - हौले  चलकर 

ताँबे की थाली में 

अभ्रक-भरा गुलाल ले आई  ,

फिर ठाड़ी हो गई

वो लजीली बन ...।

 

उसकी भीगी अलकों से 

टपकती ओस -बूँदें सतरंगी

छिटककर  बिखर गईं  

उसे निरख -निरख

फागुनिया भोर मुस्का दी -

'कालिदास ' की रूपवती नायिका- सी ।

 

सिंदूरी डिबिया बिखर गई .

रंगों  की द्यूति से खिलखिला पड़ा 

नीलाभ व्योम  

सुनहरे प्रभात के कितने  ठाठ 

देख सखि - 

पछुआ  बयार  ने चँवर डुलाया    

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3- कमाल कर रही हो

‌‌‌संध्या झा

 


अपनी शर्तों पर जी रही हो ।

 तो और खूबसूरत लग रही हो ।

 इतना जब्त कैसे है तुम में 

 जो ये कमाल कर रही हो ।

 अपनी दुनिया खुद ही बनाई है तुमने

 और खुद ही इसे बेमिसाल कर रही हो ।

  कोई और होता तो टूट जाता ।

  पर तुम तो हर सवाल का जवाब बन गई हो।

   इतना जब्त कैसे है तुम में 

  जो यह कमाल कर रही हो ।

  तुम अनोखी हो क्या  ?

  आसमान से उतरी हो क्या ?

   जो बहुत कुछ आसान कर रही हो।

   इतना जब्त कैसे है तुम में 

    जो यह कमाल कर रही हो ।

   सूरत और सीरत दोनों पाए है तुमने 

   रास्तों से भी मंजिल का काम ले रही हो।

   इतना जब्त कैसे है तुम में 

   जो यह कमाल कर रही हो ।

  अपनी शर्तों पर जी रही हो तो 

   और खूबसूरत लग रही हो  ।।

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  फ्लैट नंबर- 203 सत्येंद्र कांपलेक्स, खाजपुरा,

 बेली रोड ,मौर्य पथ, पटना (बिहार ) 800014 

Email -sandhyajha198@Gmail

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4-उड़ान बाकी है

 अर्चना राय

     


 राहें तो है बहुत मिल चुकी

पर मनचाही  मंज़िल पाना अभी बाकी है।

 चलना धीरे-धीरे तो सीख लिया

पर हवा से बातें  करना अभी बाकी है।

हौसलों की उड़ान बाकी है......

 

 सफलताएँ तो बहुत मिल चुकीं,

पर  मील का पत्थर मिलना बाकी है।

ख़्वाब तो पूरे बहुत हुए पर

अंतर्मन की गहराई में

 दबा सपना अभी बाकी है

 हौसलों की उड़ान बाकी है....

 

 पल पल बीत रही जिंदगी

 पर खुलकर जीना बाकी है

खुशियाँ तो हैं बहुत पर

मन का सुकून पाना बाकी है।

 पाने को मंजिल मनचाही

ज़िद पर आना बाकी है।

 हौसलों की उड़ान बाकी है.....

 

 प्रेम का रूप देखा है तुमने

 शक्ति रुप दिखाना बाकी है

 नारी कोमल है, कमज़ोर नहीं

दुनिया को दिखाना बाकी है

 हौसलों की उड़ान बाकी है......

 

 एक अध्याय गुर गया पर

 पूरा ग्रंथ अभी बाकी है।

 मेरा  समर्पण तो देख लिया तुमने

 पर प्रसिद्धि देखना बाकी है।

हौसलों की उडान बाकी है....

 

 माँ हूँ, बेटी हूँ, पत्नी भी हूँ

पर अपनी पहचान बनाना बाकी है

 जाने लोग मुझे मेरे दम से

 ऐसा नाम कमाना बाकी है

 हौसलों की उड़ान बाकी है......

 

 कलम हाथ में थाम तो ली है।

 पर धार लगाना बाकी है

 याद रखे दुनिया जिसको

 वह इतिहास लिखना बाकी है।

 हौसलों की उड़ान बाकी है.....

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अर्चना राय, भेड़ाघाट जबलपुर( मध्य प्रदेश)

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Friday, March 26, 2021

1063

  1-प्रार्थना

अनिता मंडा

 

तेज़ हवा

आँधी से धीमी बह रही है थोड़ी- सी

 


सड़कों के किनारे छिप गए हैं सूखे पत्तों से

हवा के इशारों पर नृत्यरत हैं भूरे धूसर पत्ते

 

पटरी के बीच खड़े पीपलों से झाँक रहे हैं 

नए, कोमल, चिकने

छोटे बच्चे की हथेलियों- से नाज़ुक पत्ते

पुराने पत्तों को रौंदती

नए पत्तों को अपने सायरन की आवाज़ से दहलाती

एम्बुलेंस दौड़ती हुई ओझल हो गई दृष्टि से

 

पत्ते-सा काँपता मन

दोहरा रहा है प्रार्थनाएँ।

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2- कृष्णा वर्मा 

1-रेगिस्तान

 

रेतीली आँधियाँ न होतीं 

तो कौन जगाता मेरे 

शुष्क हृदय में प्रेम 

तुम्हीं से तो है

मुझ रेगिस्तान की पहचान

तुम्हारी बलखाती


लहराती अदाएँ

दीवाना बना देती हैं मुझे

यूँ ही रपटकर

समेटे रहना मेरा वजूद

अपनी नर्म बाहों में

साँझ ढले तुम्हारे आँगन 

में उतरती शीतलता 

सुकून है मेरी नींदों का

तुम्हारे प्रेम की विशालता ने

देखो कितना

विस्तृत कर दिया है मुझे

सच में

प्रेम के अनंत को 

बड़ा परहेज़ होता है 

मेड़बंदियों से।

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2-रेत

 

मेरी कोमल देह पर

पाँव रखकर

सुकून पाने वाला

भूल न जाना 

मेरी तपन के तेवर 

मुझे मुट्ठियों में भींचने की

जी तोड़ कोशिश करने वाला

स्वयं तोड़ बैठता है अपनी

क्षमता का भ्रम

मन्दर भी नहीं बाँध पाता मुझे

जानता है

आज़ाद ख़्याल रेत की

फ़ितरत नहीं होती

मुठ्ठियों की कैद में रहना।

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3-पूनम सैनी

1

कुछ ना कुछ तो उन्हें भी कहना है
कुछ ना कुछ बात अभी बाकी है

क्यों इन आँखों में उमड़ा है सागर
फिर भी बरसात अभी बाकी है

लब तो चुपचाप से ही रहे लेकिन
दिल की सौगात अभी बाकी है

वक़्त बेचैन है रुखसत को कितना
और मुलाकात अभी बाकी है

टकराके पत्थर से बिखरा है दिल
दिल में जज़्बात अभी बाकी है

यूँ तो दुनिया से बहुत हमको मिला
थोड़ी सी रात अभी बाकी है

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2-कुछ तो लिखना था

 

उस रोज़ जब उठाई थी कलम
कुछ तो लिखना था
जरूरी था कि तूफान भीतर दब ना जाए

किनारों से गुज़ारकर सब उड़ेल देना था

कुछ तो लिखना था
बहुत भारी था पत्थर जो दिल पर गिरा था
भारी मन की भारी बातों का भार
जैसे घोंट रहा था दम शब्दों का
किनारे तोड़ समंदर आँखों से बह चला था
मगर धुँधलाती आँखों को
कँपकँपाते हाथों का साथ देना था
आखिर कुछ तो लिखना था
ज़िन्दगी के थपेड़ों से टूटे दिल के टुकड़े समेट
रख लेने थे कागज़ात पर
बार- बार चुभने से सफर ज़ख्मी होता ज़िन्दगी का
समझा बुझा के दिल के टुकड़े समेट तो लिये थे
वक़्त की सीख से उन्हें फिर जोड़ देना था
उस दिन ... कुछ तो लिखना था