पथ के साथी

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Saturday, October 1, 2016

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आस्था झा

खौलती है जब रूह
आस्था झा
अपनी परछाई पाने को
कितना छटपटाती होगी
तमाम बारीकियाँ समेटे
खुश्क कर जाती है
जो नम थी कभी
वो ओस की बूँदें
हरी घास पर
नंगे पैर
चले तो होगे ना?
इसी नमी को
बरकरार रखने
मेरी रूह गुनगुनाती है अब
प्यार का कोई सुहाना
गीत गाती है अब
वन्दना परगिहा
कि अब जब मिट्टी में
रखोगे अपने पाँव
तो याद करना मेरा स्पर्श
मिट्टी में घुला हुआ
वो एक और
नम स्पर्श
और तुम भी
गुनगुना देना
मीठा -सा
कोई गीत
-0-Email-asthajhamaya@gmail.com