पथ के साथी

Friday, October 2, 2015

मिलते नहीं किनारे



डॉ०पूर्णिमा राय ,अमृतसर

गीतिका

देश-प्रेम का जज्बा जिनमें उनके वारे न्यारे हैं।।
धरती पर ज्यों सिजदे करते ,आसमान के तारे हैं।

आलस जिनकी रग-रग बहता ,वह जन सुख ना पायेगा
श्रम से कोसों दूर जो रहते ,वो किस्मत से हारे हैं।।

मोती माणिक की इच्छा में  सपनों में भी खोए हैं
उलझी नैया जन्म-मरण में मिलते नहीं किनारे हैं।।

देश-एकता खातिर आओ मिलकर सब सहयोग करें
त्याग दें नीति लूटपाट की मिलते तभी सहारे हैं।।

आजादी के मतवालों ने अपना जीवन वार दिया
वीर पराक्रम की गाथाएँ युवकों तुम्हें पुकारे हैं।।

पूर्णिमा से व्योम ये चमके ओस की बूँदें सज रहीं
गूँज उठी सर्वत्र दिशाएँ इंकलाब के नारे हैं।।
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