पथ के साथी

Wednesday, July 17, 2013

आँखें क्यों गीली हैं

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
अब घोर अँधेरा है
क्यों रोता साथी
नज़दीक सवेरा है  ।
2
राहें पथरीली हैं
आगे जब बढ़ना
आँखें क्यों गीली हैं ।
3
अन्धड़ भी आएँगे
जो चाहे चलना
वे रोक न पाएँगे ।
4
ताण्डव  जब होता है
बचता कौन भला
बादल जब रोता है ।
5
कुछ ऐसे जतन करो
घाव पहाड़ों के
मिलकर सब लोग भरो ।
6
पेड़ों की हरियाली
लूटे  ना कोई
टूटे  ना इक डाली ।
7
कुछ जान न पाओगे
दु:ख जब पूछोगे
चोटें ही खाओगे ।
8
कितने भी जतन करें
वाणी नीम पगी
कड़वे ही वचन झरे ।
9
सीमा है कहने की
तार-तार टूटी
हिम्मत भी सहने की ।
10
बातों की चोट बड़ी
काँटा तो निकले
निकले कब कील गड़ी ।

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