रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
पलकों
पर तुम रात दिन,उर में हर पल वास।
रोम-रोम में प्यार का,होता है आभास।।
2
झरने-सी तेरी हँसी,तिरती हरदम पास।
जीवन
के पल चार में,तुम ही मेरी प्यास।।-0-
चौपाई
आँसू
ज्योत्स्ना
प्रदीप
आँसू की जननी है पीड़ा
करती है पर कैसी क्रीड़ा ।।
जनम दिया पर तज देती है
आँखों के पथ रज देती
हैं ।।
आँसू का बस दोष बता दो
रहे जहाँ ये वही पता दो ।।
आँखों से ये बह जाते
हैं
मौन व्यथा पर कह जाते हैं ।।
आँसू जल का जीवन न्यारा
नयनों चमके मानों तारा ।।
ये भी जीवन के बलिदानी
दूजों की पीड़ा के मानी ।।
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2-दिव्य
- बिंदु
नभ
,गिरि ,कानन तुम वसुधा हो
जनम
- जनम की तीव्र क्षुधा हो ।।
रजत-
चाँद हो तपस स्वर्ण से
नील
कमल के सरल पर्ण से ।।
तुम
हो बादल शांत -सिंधु से
पार
न कुछ हो दिव्य - बिंदु से ।।
नयन
अमिय को तुम छलकाते
करुणा
पाकर कर जुड़ जाते ।।
शिशु
की कोमल किलकारी हो
सुरभित
कुसुमों की क्यारी हो||
जानें
अब किस देश बसे हो
किस
नाते में हमें कसे हो ।।
जग
में जितना रहता छल है
इन
आँखों से गिरता जल है ।।
मन
ना लगता है इस जग में
मन
में रख लो या फिर दृग में ||
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