पथ के साथी

Sunday, April 16, 2023

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 1-तथागत / अनीता सैनी ‘दीप्ति’

 


अबकी बार

पूर्णिमा की आधी रात को 

गृहस्थ जीवन से विमुख होकर 

जंगल-जंगल नहीं भटकना होगा तथागत को 

और न ही

पहाड़ नदी किनारे खोजना होगा सत 

उसने एकांतवास का

मोह भी त्याग दिया है 

त्याग दिया है 

बरगद की छाँव में

आत्मलीन होने के विचार को 

उस दिन वह मरुस्थल से

मिलने का वादा निभाएगा 

भटकती आँधियाँ 

उफनते ज्वार-भाटे

रेत पर समंदर के होने का एहसास  देख 

जागृत होगी चेतना उसकी 

वह उसका का माथा सहलाएगा 

तपती काया पर

आँखों का पानी उड़ेलेगा 

मरुस्थल का दुःख पवित्र है

उसे आँसुओं से धोएगा

उसकी  देह के 

बनते-बिगड़ते धोरों की मुट्ठी में

बंद हैं

तुम्हारी स्मृतियों के मोती।

 

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2-टॉनिक

अर्चना राय

 

उसे अलसुबह की नींद

बड़ी प्यारी लगती है.. 

और मुझे रोमांस

नींद के आगोश में

खोई जब वो... 

चुपके से

उसे बाहों में ले

 चेहरे पर... 

बिखरी जुल्फों को

हटा.. उसके

गाल पर एक चुंबन

अंकित करता हूँ.. 

तब वह अलसाई- सी

 कुनमुनाती हुई

अबोध बच्चे की तरह

अँगड़ाई लेकर

अधखुली आँखों से

मुझे देखकर मुस्कुराती है

 तब ... सारी कायनात 

मेरी बाहों में सिमट जाती है

इस तरह मैं अपने .... 

दिन की शुरुआत करता हूँ... 

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