पथ के साथी

Friday, July 5, 2019

913-पास तुम्हारे मेरा मन है


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
अपना कोई घर- आँगन है
यही सोचना पागलपन है।
ठहर गए थे जिस बस्ती में
वह दो पल का वृंदावन है।
उनके हिस्से महल दुमहले
अपने हिस्से नील गगन है।
पहले घायल पाँव हुए थे
अब तो घायल पूरा तन है।
तन तो साथ चला आया था
पास तुम्हारे मेरा मन है।
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2
कैसे -कैसे दिन
बेरहम वक़्त ने
हमको दिखाए हैं।
जिनको सींचा था
वे ही मिलकरके
मिटाने आए हैं।
देखना कभी तो
पूरा सच क्या है
तुम ऑंखें खोलकर।
पी गए  नफ़रतें
सारे छल फरेब
ईर्ष्या में घोलकर।
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