1-डॉ.कविता भट्ट
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प्यास और पानी के बीच; है जो फासला-
यही है जिजीविषा- जीने का सिलसिला।
व्यक्ति तय कर लेता है पीढ़ियों का सफ़र।
प्यास-भूख भीरु को भी बना देती; निडर।
वामन के जैसे ही नन्हे; किन्तु दृढ़ पग-धर।
है केवल प्यास-भूख से पानी-रोटी की दूरी।
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आस जब जोगन हो जाए।
कण्टकपथ यौवन हो जाए।
जहर मौन हो- मन पीता है;
पीड़ामय जीवन हो जाए।
पलक-द्वार जब वह न खोले।
पीर जिया की अश्रु न बोले।
तब यह समझो घट रीता है;
जीवन इसमें रस न घोले।
कठिन हो जब मन समझाना।
विकल जी की प्यास बुझाना।
मृत्यु सरल, कठिन है जीवन;
क्या साँस का आना-जाना?
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