पथ के साथी

Friday, July 27, 2012

कट गए जंगल ( सेदोका)



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तपती शिला
निर्वसन पहाड़
कट गए जंगल
न जाने कहाँ
दुबकी जलधारा
खग-मृग भटके ।
2
झीलें है सूखी
मिला दाना न पानी
चिड़िया  है भटकी
आँखें हैं नम
लुट गया आँगन
साँसें भी हैं  अटकी ।
3
घाटी भिगोते
रहे घन जितने
वे परदेस गए
रूठ गए वे
निर्मोही प्रीतम -से
हुए कहीं ओझल ।

4
छाती चूर की
चट्टानों की  भी ऐसे
पीड़ा दहल गई ।
विलाप करे
दर-दर जा छाया
गोद हो गई सूनी ।
-0-