शशि पाधा
कन्हैया तोरी बंसी भाग भरी
निसिदिन तेरे संग जिये वो
जब से अधर धरी ।
वृन्दावन की कुंज गलिन में
गोपिन रास रचाई
सात सुरों में गूँजे बंसी
झूमें कृष्ण कन्हाई
दूर खड़ी यशोदा मैया
नयनन नेह झरी ।
छू के बंसी राधे बोली-
तू किसना अति प्यारी
श्वास- श्वास में तेरो बसते
मैं तुझसे ही हारी
किस डोरी से बाँधे तूने
पूछत पहर- घरी
राधे- राधे गाए बंसी
कान्हा हिय हरषाय
मेरे मन की बूझी तूने
पुनि पुनि गीत सुनाय
तेरे सुर की राग -रागिनी
बाँधे प्रीत -लड़ी
कन्हैया तोरी बंसी भाग भरी ।
-0- [ चित्र; गूगल से साभार]