रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
काल की गहरी निशा है
दर्द भीगी हर दिशा है।
साथ तुम मेरा निभाना
नहीं पथ में छोड़ जाना।
काल की गहरी निशा है
दर्द भीगी हर दिशा है।
साथ तुम मेरा निभाना
नहीं पथ में छोड़ जाना।
छोड़ दे जब साथ दुनिया
कंठ
से मुझको लगाना
एक दीपक तुम जलाना।।
गहन है मन का अँधेरा
दूर मीलों है सवेरा।
कारवाँ लूटा किसी ने
नफ़रतों ने प्यार घेरा ।
यहाँ अंधों के नगर में
क्या इन्हें दर्पण दिखाना।
एक दीपक तुम जलाना।।
गहन है मन का अँधेरा
दूर मीलों है सवेरा।
कारवाँ लूटा किसी ने
नफ़रतों ने प्यार घेरा ।
यहाँ अंधों के नगर में
क्या इन्हें दर्पण दिखाना।
एक अकेली स्फुलिंग थी
दावानल बन वह फैली।
थी ऋचा -सी पूत धारा
ईर्ष्या-तपी, हुई मैली।
कालरात्रि का है पहरा
ज्योति बनकर पथ दिखाना।
एक दीपक तुम जलाना।।
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