पथ के साथी

Thursday, April 23, 2020

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1-मुझसे रहा न गया-मुकेश बाला

देख बदली में

छिपते हुए चाँद को
मुझसे रहा न गया
आखिर पूछ ही लिया
मैंने वो
जो उससे कहा न गया
कुछ यूँ  याँ किया
दर्द को अपने
टूटे हों जैसे
उस के सपने
आज कोई पलक तक ना उठी
कल होड़ लगी थी
मेरे दीदार की
बना हुआ था
मैं मूर्त्त
हर किसी के प्यार की
हँस रहे हैं मुझ पर
ये सितारे
बड़ा इठला रहे थे
चँदा प्यारे
बेखबर था मैं
दुनिया की रीत से
दिल लगा बैठा
दो पल की प्रीत से
छुपा लिया है खुद को
कर बदली की ओट
दिख न जाए कहीं
लगी हृदय पे चोट
आज खुद को
शून्य में पाया है
चारों ओर
घोर अंधेरा छाया है
सुन चन्द की बातें
ये बात समझ में आईं
अपने ही मतलब को
इस जग ने रीत बनाई
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2-इन आँखों में- मुकेश बाला
  
इन आँखों में
कितना कुछ समाया 
कुछ खोया कुछ पाया 
गहराया अंदर
प्रीत का समंदर 
फ़िक्र अपनों की
उड़ान सपनों की
दिल की फरियादें
दोस्तों की यादें
प्यार का दरिया
जीने का जरिया
दायित्व का भार
स्नेह की धार
प्रेम और पीर
बेहिसाब नीर
ऊर्जा और होंसला
आशाओं का घोंसला
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3-बरसात में भीगा हुआ कागज़- मुकेश बेनिवाल

क्यों करते हो कोशिश
मुझे समझने की
मुझसे तो अनजान है
मेरा अपना ही साया
बरसात में भीगा हुआ
कागज़ हूँ मैं
चाह कर भी जिसे 
कोई पढ़ नहीं पाया
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2- आशा बर्मन
1-मौन बहुत है

मौन बहुत है, कुछ तो बोलो ।
माना कि तुम व्यस्त बहुत हो,
जीवन द्रुत है, त्रस्त बहुत हो ।
अन्तर्मन की परतों को निज
अब तो धीरे-धीरे खोलो ।
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो ।

दूर कहीं कोई चिड़िया चहकी,
पास कहीं पर जूही महकी,
मधुर-मादक परिवेश है छाया.
वाणी का इसमें रस घोलो ।
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो ।

पहले तुम थे बहुत चहकते,
यूँ ही  कुछ भी कहते रहते,
इस गम्भीर मुखौटे को तज,
क्यों पहले जैसे हो लो ।
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो ।
जो अन्तर में, मुझे बताओ,
कह सब-कुछ हल्के हो जाओ ।
अपनेमन के मनकों को
प्रेम पगे तारों में पो लो ।
मौन बहुत है, कुछ तो बोलो ।
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3- सत्या शर्मा 'कीर्ति '

1-माँ, मेरी तुम मत जाओ

नहीं जानता जन्म क्या है ?
नहीं जानता मृत्यु क्या है ?
वेदों के सूक्तों में क्या है ?
ग्रन्थों के अर्थों में क्या है ?
पर ! जानता हूँ इतना कि
माँ , मेरी तुम मत जाओ ना

नहीं चल रही सांस तेरी
क्यों निस्तेज बदन ये तेरा
क्यों  मुंदी हैं ये पलकें तेरी ?
होठ बन्द क्यों हुआ हैं तेरे ?

हाँ! कुछ न कहना,चुप ही रहना
पर! माँ मेरी मत जाओ ना

मेरी पीड़ा न कोई देख सकेगा
मन की व्यथा न समझ सकेगा
तुम जननी मैं पुत्र तुम्हारा
कौन मुझे अब दुलार करेगा ?
हाँ! दुलार भले अब ना करना 
पर! माँ , मेरी मत जाओ ना ।

पल - पल दिन गुर रहा है
शाम है ढल कर आने वाली
क्यों नहीं उठती तुम आज तो
मेरी भी आँखें है झलकने बाली
नहीं पसन्द मेरा रोना तुझको
मैं अपने आँसू नहीं बहाऊँगा
हृदय पीड़ा से फट रहा है
फिर भी नहीं दिखाऊँगा
हाँ! मत पोछना आँसू मेरे
पर! माँ मेरी मत जाओ ना ।


स्वर्ग - नरक का ज्ञान न मुझको
सुख - दुख का न हाल मैं जानु
बस तेरे आँचल के ही अंदर ही
सारी दुनिया की खुशियां पालूं
हाँ ! मत देना आँचल की छाँव मुझे
पर ! माँ मेरी मत जाओ ना ..
हाँ ! प्यार भले न अब करना
पर! माँ मेरी मत जाओ ना ।
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