पथ के साथी

Wednesday, April 18, 2018

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1-सूनी घाटियों में
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

मैं सूनी घाटियों में
प्यास से व्याकुल
हिरना -सा फिरा हूँ।
वनखण्ड की आग में
चारों तरफ से
मैं घिरा हूँ।
कहाँ तुम ! मुझको बचा लो!
अपने सीने से लगा लो
मैं तुम्हारी बाँसुरी का गीत हूँ।
स्वप्न तक में खोजते ही
रात बीती
चूमते ही रह गए
प्यासे अधर माथा तुम्हारा।
प्यासे नयन
हर पल तुम्हीं को ढूँढते
चूम पलकें
प्यास ने पाया किनारा।
नींद से मुझको जगा लो
प्रलम्ब बाहों में समा लो
मैं तुम्हारा बीज मंत्र हूँ, गीत हूँ।
व्यथाएँ  हैं तुम्हारी नभ जैसी
तुमसे मिलूँगा,
ताप सारे मैं हरूँगा
वक्त कम है ,
भागते व्याकुल समय का
अनुबन्ध अगले
जनम का भी करूँगा
जो बचा पल,वह तेरे लिए
जो रचा है गीतवह तेरे  लिए।
स्वप्निल पलकों पर सजा लो
हृदय में मुझको छुपा लो
मैं तुम्हारे हर जनम का मीत हूँ।
-0-(16 अप्रैल 18)
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2-एक खत खुद के नाम  
सत्या शर्मा 'कीर्ति '
चित्र: सत्या शर्मा 'कीर्ति'

जाने कितना ही गुजर गया
वक्त कि मैंने तो तुम्हें देखा ही नहीं
कहाँ खो गई तुम

कहाँ गई तुम्हारी वो
निश्छल मुस्कुराहटें
वो चंचल और अल्हड़पन
भरी आहटें
हर बात को समझने की
वो मासूम- सी ललक
हर मुश्किल दूर कर देने
की तुम्हारी वो पहल

दिखता नही वो रूप
अब तुम्हारा कहीं भी
गुम -सी हो गई हो
शायद खुद में ही

क्यों दबाने लगी हो 
चाहतों को अपनी
क्यों करने लगी हो
नजरअंदाज ख्वाइशों को अपनी

क्यों अब बारिशों में
निकलने से डरती हो
क्यों अब शब्दों की भीड़ से
बचकर तुम चलती हो
क्यों करने लगी हो
हर काम सोच -सोचकर
क्यों इच्छाओं को मार
तुम अर्थहीन जीने लगी हो
क्यों नही इतराती हो
खुशियों पर अपनी
क्यों नही हर्षाती हो
उपलब्धियों पर अपनी
क्यों लगी हो डरने
हर छोटी- सी बात पर तुम
क्यों  लगी ही घबराने
हर नई मुलाक़ात पर तुम
चलो फिर से जी लो ना
खुद के लिए भी
फिर से मुस्कुरालो न
अपने लिए भी
कभी पीठ थपथपालो
अपनी अच्छाइयों पर भी
कभी देदो शाबाशी
अपने मन के सच्चाइयों पर भी
चलो फिर मिलते हैं
अपना भी ख्याल रखना
आँखों में सपने और
दिल में खुशियाँ संभाल रखना ।।।
सिर्फ तुम्हारी
वजूद!

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