पथ के साथी

Wednesday, May 27, 2015

पंजाब की पीड़ा




ज्योत्स्ना प्रदीप 

हरियाली की मोहक छवि
समृद्धि  के थे आह्वान रे !
हरे -भरे  थे खेत जहाँ        
सूने-से हैं मकान  रे !


बैलो की मधुर घंटियाँ
गीत धरा के गाती थीं
स्नेह भरी माँ बेटों को
रोटी- साग खिलाती थी
        राजा मिडास जैसा तू 
        बना है क्यों धनवान रे ! 1

रोटी की पोटली लियें
धूप में आती नार थी ।
नयनो के काजल में भी
ठंडी छैया अपार थी ।
      भरे थे जो अनाजों से ,
      सिसकते है खलिहान रे । 2

गेहूँ की बालियाँ कभी
उसकी  बालियों से लड़ी
वो तकती  तेरा रास्ता 
चिनाब के किनारे  खड़ी
         माटी में कहीं दबे हुए
         मैं ढूढ़ूँ वो  निशान  रे ! 3

उसपर  जुल्म ये ढाया है
तू बसा  कहीं  बिदेस रे
वो कैसा सोना  रूप था
ये क्या बनाया भेस रे?
      आजा तेरी  बेबे के
       उड़ने चले है प्राण रे ! 4
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