पथ के साथी

Tuesday, May 14, 2013

स्मृति शेष


(पिछले दिनों दिवंगत प्यारी माँ की याद में, वह माँ जिसका ज़रा-सा स्पर्श सारा दु:ख हर लेता था।)
-सुशीला शिवराण

स्मृति शेष
तेरे अवशेष
खूँटी पर टँगा
नीली छींट का कुर्ता
जैसे अभी बढ़ेंगे तेरे हाथ
और पहन लेंगे पीहर का प्यार
बंधेज का पीला
बँधा है जिसमें अभिमान
तीन बेटों की माँ होने का
पोते-पड़पोते
करते रहे समृद्ध
तेरे भाग्य को !
करती गई निहाल
बेटियों, बहुओं की ममता ।

शांत, सलिल में
मंथर चलती तेरी जीवन-नैया
घिरी झंझावात में
दौड़े आए तेरे आत्मज
बढ़ाए हाथ
कि थाम लें हिचकौले खाती नैया
खींच लें सुरक्षित जलराशि में ।

कैंसर का भँवर
खींचता रहा तुझे पल-पल
अतल गहराई की ओर
लाचार, अकिंचन
तेरे अंशी
देखते रहे विवश
काल के गह्वर में जाती
छीजती जननी
क्षीण से क्षीणतर होती
तेरी काया
तेरी हर कराह में
बन तेरा साया
ताकते रहे बेबस
कि बाँट लें तेरा दर्द
चुकाएँ दूध का क़र्ज़
निभा दें अपना फ़र्ज़
पर उफ़्फ़ ये मर्ज़ !

आया जो बन कर काल
बेकार हुईं सब ढाल
तीन महीने का संघर्ष
ज़िन्दगी हारी
जीती बीमारी ।

ना होने पर भी
हर खूँटी, हर आले में
मौजूद है माँ
घर की हर ईंट में
चप्पे-चप्पे पर
अंकित हैं तेरे चिह्न
हर कोने से
बरसती हैं तेरी आशीषें ।

क्या है वास्तव में कोई फ़र्क
तेरे होने न होने में ?

बस इतना ही तो
कि तेरा स्पर्श
अहसास बनकर
अब भी लिपटा है
तन-मन से
और तू न हो कर भी
हर जगह है
रेत के हर कण में
घड़े के शीतल जल में
चूल्हे की राख में
सिरस की छाँव में

हाँ तू है
हर जगह
और मुझमें ।