पथ के साथी

Thursday, November 4, 2010

मैं वह दीपक


-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

मैं वह दीपक नहीं , जो आँधियों में सिर झुका दे ।
मैं वह दीपक नहीं , जो खिलखिलाता घर जला दे ।
मैं वह दीपक नहीं , जो दुखी से मुँह मोड़ लेता ।
मैं वह दीपक नहीं , जो गाँठ सबसे जोड़ लेता ।
        मैं तो वह  दीपक हूँ , जो खुद जलकर मुस्कुराता ।
       मैं तो वह  दीपक , जो पर पीर में अश्रु बहाता ।
       मैं वह  दीपक सदा जो गैर को भी पथ दिखाता ।
मैं  वह  दीपक, तुम्हारे नेह को जो सिर झुकाता
विष पी सुकरात तक भी कुछ नहीं समझा सके थे  ,
मैं क्या समझा सकूँगा, क्या समझ सकता ज़माना ।
कौन समझेगा? शिव ने क्यों किया विषपान हँसकर
दीप जलकर झूमता क्यों बहुत कठिन है बताना ।
        मैं जलता हूँ कभी अन्धकार न तुमको रुलाए ।
       मैं जलता हूँ कोई दुख कभी नहीं पास आए ।
मैं जलता हूँ तुम्हारे कल्याण की बनकर शिखा ।
मैं जलता हूँ कि कोई दिल तुम्हारा ना दुखाए ।
बस आज मेरी तो सभी से , है इतनी प्रार्थना  -
प्यार के दो बोल मुझसे तम -पथ में बोल देना
रात भर जलता रहूँगा , नेह थोड़ा घोल देना ।
आँधियाँ जब-जब उठें ,तुम द्वार अपना खोल देना।
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