पथ के साथी

Thursday, July 19, 2018

830-कृष्णा वर्मा की कविताएँ


कृष्णा वर्मा 

1-तेरा जाना

किए जतन मन बहलाने को
मिलते  नहीं  बहाने
अधरों की हड़ताल देख कर
सिकुड़ गईं मुस्कानें।
मन का शहर रहा करता था
जगमग प्रीतम तुमसे
बिखरा गया सब टूट-टूट कर
चले गए तुम जब से।
चुहल मरा भटकी अठखेली
गुमसुम हुई अकेली
हँसता- खिलता जीवन पल में
बन गया एक पहेली।
सिमट गया मन तुझ यादों संग
हृदय कहाँ फैलाऊँ
कहो तुम्हारे बिन कैसे
विस्तार नया मैं पाऊँ।
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2-स्वप्न उनके ही फलें

काल के संग जो चले
आज उसको ही फले
रोशनी ना हो सकेगी
वर्तिका जो ना जले।

जो निगल लेते हैं संकट
धैर्य को धारण किए
लड़खड़ाएँ लाख लेकिन
वो कभी गिरते नहीं।

बूँद माथे पर टपकती है
उसी के स्वेद की
जिसने पहरों की मशक़्क़त
चिलचिलाती धूप में।

पार करना आ गया
कठिन राहों को जिसे
मंज़िलें बाहें पसारे
मुंतज़िर उसको मिलें।

शूल चुभने की ख़लिश को
जो नहीं करते बयां
चरण उनके चूमता है
एक दिन झुक कर जहाँ।
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