पथ के साथी

Monday, October 30, 2023

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प्रेम की प्रतीक्षा में... (सॉनेट)

अनिमा दास

  


प्रेम की प्रतीक्षा में तपोवन की तपस्विनी कह रही क्या सुन

मेदिनी वक्ष में कंपन मंद- मंद, ऐसी तेरे स्पंदन की धुन

बूँद-बूँद शीतल-शीतल तेरे स्पर्श से सरित जल कल-कल

मंदार की लालिमा- सा क्यों दमकता तपस्वी मुखमंडल?

 

रहे तम संग जैसे शृंग गुहा में खद्योत, ऐसे ही रहूँ त्रास संग

अयि! तपस्वी,मंत्रित कर अरण्य नभ,भर वारिद में सप्तरंग

शतपत्र पर रच काव्यचित्र मेरी काया को कर अभिषिक्त

अयि! तपस्वी,त्रसरेणु- सी विचरती,कर स्वप्न में मुझे रिक्त।

 

कह रही तपस्विनी, तपस्वी हृदय की अतृप्त तरुणी

रौप्य-पटल पर कर चित्रित मुग्ध मर्त्य,दे दो मुक्त अरुणी!

तपस्या हुई तृप्त, नहीं है क्षुधा का क्षोभ क्षरित स्वेदबिंदु में

समाप्ति के सौंदर्य से झंकृत बह रही निर्झरिणी सिंधु में।

 

अयि तपस्वी! मोक्ष की इस सूक्ष्म धारा में है समय,कर्ता

स्मृति सहेजती तपस्विनी के द्वार पर मोह है मनोहर्ता।

 

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कटक, ओड़िशा