अर्चना राय
1
पुरुष के लिए
सफलता की सीढ़ी
बन जाती है...
वहीं...
प्रेम में पड़ा पुरुष
सफल होती स्त्री के पैरों की
बेड़ी बन जाता है...
कलम हाथ में
लेते ही..
स्त्री और पुरुष
का अंतर...
भूल केवल अपना
साहित्य धर्म
निभाती हूँ....
हर तरफ...
आदमी ही आदमी
मगर आदमियत
नदारद- सी है....
हर तरफ शोर ही शोर
बिखरा कोलाहल है
फिर भी न जाने क्यों
तन्हा- सा दिखता
हर आदमी है...
-0-
4- आखिर क्यों?
महज
चार मंत्रों और
अग्नि
के कुछ चक्कर
लगा
लेने भर से...
एक
स्त्री,
...
पुरुष
के लिए
एक
इन्सान से....
उपयोगी
वस्तु में
बदल
जाती हैं...
तो
फिर पुरुष भी
स्त्री
के लिए
कोई
वस्तु क्यों नहीं बनता?
जबकि
उसने भी तो
साथ
ही चक्कर लगाए हैं...
अग्नि
के इर्दगिर्द....
स्त्री
के पल्लू से बँधकर...