पथ के साथी

Thursday, November 7, 2019

936


1-स्मृतियों के घेरे में / कृष्णा वर्मा

जब-तब घिरे स्मृतियों का कोहरा
सन्नाटों में धड़कता मौन
पलटने लगता है अतीत के पन्ने
किसने कब क्यूँ कहाँ और कैसे को
कुरेदता मन
झाँकने लगता है बीती की तहों में
किसके छल ने डसा और
किसके व्यंग्य ने भेदी आत्मा
किसने उकेरने चाहे
मेरे तलवों की ज़मीं पर अपने नक़्शे
कौन मेरे पाँव की ज़मीं खिसकाकर
बनाने के प्रयत्न में था अपना महल
किसने चलाए मेरे वक़्त पर
तिरछे बाण और
किसने बँधाया मेरी अस्थिरता को धीर
किसके हाथों का स्पर्श दे गया
कांधे को आश्वासन
किसकी हथेली की उष्मा दे गई
अपनापे की गरमाहट मेरी ठंडी हथेली को  
किसने निभाया दिली रिश्ता और
किसने औपचारिकता
कौन था जिसने ज़ख़्मों को भरा
और किसने उन्हें कुरेदा
किसने दी भर-भर के पीड़ा और किसने हरी
आंकलन करता समीक्षा में उलझा
पगला मन भूल जाता है
कुहासे को छाँटना
अतीत की डबडबाहट में भीगी पलकें
बार-बार लग जाती है
गुलाबी डोरों के गले
कतरा-कतरा सोज़ 
उड़ेलकर कोरों के काँधों पर
छाँटना चाहती हैं तुषारावृत को
पर यादों का समंदर है कि सूखता ही नहीं
हठी स्मृतियाँ इंतिहा मजबूती से
थामे जो रहती हैं मन की अँगुली।
-0-
2-फ़ेहरिस्त -प्रीति अग्रवाल

एहसानों की फ़ेहरिस्त
बड़ी हो रही है,
माथे पे चिंता
घनी हो रही है।

अभावों में डूब
तिनके ढूँढती हूँ जब,
हौली सी आवाज़
कानों में गूँजती है तब,

मेरा खुदा सकुचाया सा
मुझसे कहे-
क्या करूँ , ये सारे,
करम हैं तेरे।

पर रुक, कुछ फ़रिश्ते
भी संग कर रहा हूँ,
हिफ़ाज़त के सारे
प्रबन्ध कर रहा हूँ।

तुझे पंखों पे बैठा,
ले जाएँगे उस पार,
लगी, तो लगी रहने दे
अभावों की कतार!!

किस सोच में खड़ी
क्या कोई असमंजस,
इक फ़रिश्ते ने पूछा
काम से रुककर।

अभाव जितने,
उनसे दुगुने फ़रिश्ते,
कर्ज़ कैसे अदा हो
ये दुविधा बड़ी है !

मुस्कुराया और सुझाया,
है यह भी तो सम्भव,
तू फ़रिश्ता थी हमारी
जन्मों जन्म तक!!

एहसान तेरे
चुकाए जा रहे हैं,
कर्ज़ न कि तुझ पर
चढ़ाये जा रहे हैं ।

ऐसा तो पहले
सोचा ही नहीं था,
खुश हुई मैं,
और मेरा खुदा भी खुश था!!!
-0-
3-दोहा /मंजूषा मन

दूर बसे परदेस तुम, मिलने की क्या आस।
माँगूँ निशदिन ये दुआ, आ जाओ अब पास।।
-0-