पथ के साथी

Friday, September 28, 2018

847

1-बरखा रानी
( सार / ललित छंद )
महेन्द्र देवांगन 'माटी'

झूम रहे सब पौधे देखो , आई बरखा रानी ।
मौसम लगता बड़े सुहाना , गिरे झमाझम पानी ।।1।।

इस हर्षित  धरती को देखो , हरियाली है छाई ।
बाग बगीचे दिखते सुंदरमस्ती सब में  आई ।।2।।

कलकल करती नदियाँ बहतीं  , झरना शोर मचाए ।
मोर नाचते वन में देखो , कोयल गाना गाए ।।3।।

बादल गरजे, बिजली चमके , घटा घोर है छाई ।
सोंधी सोंधी माटी महके , बूँदें उसको  भाई ।।4।।

खेत क्यार  में झूम झूमकर , फसलें सब लहराएँ ।
हैं किसान को खुशी यहाँ पर पंछी गीत सुनाएँ ।।5।।


-०-महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) ,पंडरिया ( कवर्धा) ,छत्तीसगढ़
  mahendradewanganmati@gmail.com
8602407353

-०-
2-पूर्ण
मंजूषा मन

तुम्हें चुकाने होंगे मेरे सुख चैन
तुम्हें लौटा देने के होंगे
मेरे सपने
दे देने होंगे सारे के सारे आग्रह
सारी उम्मीदें 
सब आशाएँ

वरना तुम्हें 
और तुम्हारे साथ मुझे भी
फिर- फिर लौटना होगा 
इस धरती पर
कितने ही जन्मों तक...

जो बाकी रखोगे तुम
अपने कर्ज 
इन्हें चुकाए बिना
जीवन न होगा पूर्ण।

-0-

Friday, September 14, 2018

846-हिन्दी -दिवस


शृंगार है हिन्दी 
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
खुसरो के हृदय का उद्गार है हिन्दी ।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।।
मीरा के मन की पीर बनकर गूँजती घर-घर ।
सूर के सागर-सा विस्तार है हिन्दी ।।
जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक ।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी ।।
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर ।
छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी ।।
'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया ।
‘टंकारा’ के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।।
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया ।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।।
'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें ।
'आँसू' की करुण, सहज जलधार है हिन्दी ।।
प्रसाद ने ‘हिमाद्रि’ से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।
पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई ।
भारत का है गौरव, शृंगार है हिन्दी ।।
'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई ।
दिनकर की द्वापर* में हुंकार है हिन्दी ।।
भारत को समझना है ,तो जानिए इसको ।
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।
देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी ।।
(*द्वापर युग को केन्द्र में रखकर लिखे दो काव्य-कुरुक्षेत्र और रश्मिरथी से दिनकर जी की विशिष्ट पहचान बनी। 'परशुराम की प्रतीक्षा' में परशुराम को भी प्रतीकात्मक रूप में लिया ।]


Monday, September 10, 2018

845-आयोजन -1


 8 सितम्बर 2018 को  1:30- 4:30 अपराहन में हिन्दी प्रचारिणी सभा  और हिन्दी चेतना की और से एक
 संगोष्ठी  का आयोजन मार्खम नगर की  मिलिक्न्स मिल्स लाइब्रेरी में  किया गया । इस अवसर पर मार्खम क्षेत्र
के सांसद  श्री बॉब सरोया जी द्वारा चार पुस्तकों और दो पत्रिकाओं के विशेषांकों का विमोचन भी किया गया । ये पुस्तकें थीं-लघुकथा का वर्त्तमान परिदृश्य (हिमांशु ),जरा रोशनी मैं लाऊँ ( डॉ.भावना कुँअर ) ,
घुँघरी (डॉ. कविता भट्ट ), तुम सर्दी की धूप ( हिमांशु ), और पत्रिकाएँ - हिन्दी चेतना ( यशपाल विशेषांक मुख्य सम्पादक

श्याम त्रिपाठी  और सहयोगी सम्पादक-डॉ.भावना कुँअर ,डॉ.ज्योत्स्ना  शर्मा व डॉ.कविता भट्ट   ) , सरस्वती सुमन -क्षणिका विशेषांक ( मुख्य सम्पादक डॉ. आनन्दसुमन सिंह , अतिथि सम्पादक हरकीरत हीर व हिमांशु )।
चारों पुस्तकों को सभा ने भवन में  पोस्टर के रूप  में प्रदर्शित भी किया था । इस   कार्यक्रम  के आयोजन पर
 ओंटेरियो  प्रांत के प्रमुख मंत्री ( मुख्य मंत्री ) आदरणीय डग फोर्ड  और वयोवृद्ध  राजनेता  आदरणीय रेमण्ड चो के शुभकामना संदेश भी पढ़े गए ।

             सर्व प्रथम श्री  श्याम त्रिपाठी जी ने   चारों पुस्तकों  पर अपने विचार प्रस्तुत किए । तत्पश्चात् कृष्णा वर्मा
जी ने चारों पुस्तकों पर अपनी गंभीर  विवेचना  प्रस्तुत की , जिसे यथाशीघ्र  यहाँ  दिया जाएगा । इसके बाद  हाइकु पर विशेष चर्चा के अंतर्गत  मैंने   विविध पक्षों पर विस्तार से बताया गया । अंतःप्रकृति हो या बाह्य प्रकृति ,उसे हाइकु में बाँधना श्रमसाध्य नहीं, बल्कि भावसाध्य है। सूक्ष्म अति सूक्ष्म भाव को यदि  तदनुरूप भाषा में बाँधना है , तो यह तभी सम्भव है   ,जब हाइकुकार के पास  रचनात्मक तन्मयता हो   विषय को सरल और व्यावहारिक बनाने के लिए कुछ उदाहरण भी दी गए । सम्मान  और काव्य-पाठ  के साथ  कार्यक्रम सम्पन्न  हुआ ।
1-डॉ.सुधा गुप्ता
 1-काठ के घोड़े, / चलता तन कर /माटी-सवार ।-
2- चाँदी की नाव / सोने के डाँड लगे / रेत में धँसी ।-3- चिनार पत्ते / कहाँ पाई ये आग/ बता तो भला।-  4-दु:ख ने माँजा / आँसुओं ने धो डाला  / मन उजला।-5-काजल आँज / नभ-शिशु की आँखों /हँसी बीजुरी
-०-
-2-रामेश्वर काम्बोज –
1-सिन्धु हो तुम / मैं तेरी ही तरंग, / जाऊँगी कहाँ ?-2- लिपटी लता / लाख आएँ आँधियाँ /तरु के संग।    3--घना अँधेरा / सिर्फ़ एक रौशनी / नाम तुम्हारा।
3- डॉ.कुँवर दिनेश
1-नदी में बाढ़ / नेता-अधिकारी की /मैत्री प्रगाढ़। 2-प्रात: मंदिर / तनाव दिन भर/सायं मन्दिर
4-डॉ.भावना कुँअर
1- फूल -गगरी /टूटकर बिखरी /गन्ध छितरी। 2-घाटियाँ बोलीं-/वादियों में किसने /मिसरी घोली?
3-चिड़िया रानी / खोज़ती फिरती है /दो बूँद पानी।
5-डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1-काटें न वृक्ष / व्याकुल नदी-नद / धरा कम्पिता । 2-पीर नदी की- / कैसे प्यास बुझाऊँ   /तप्त सदी की  !
6-डॉ.कविता भट्ट
1-किसको कोसें ?/हर शिला के नीचे / भुजंग बसे ।-2-डाकिया आँखें / मन के खत भेजें / प्रिय न पढ़े।
4-मैं ही बाँचूँगी / पीर-अक्षर पिय, /  जो तेरे हिय।

Saturday, September 8, 2018

844



नदी के आगोश में
डॉ कविता भट्ट
1
लिपटा वहीं
घुँघराली लटों में
मन निश्छल,
चाँद झुरमुटों में
न भावे जग-छल ।
 2
चित्र :रमेश गौतम 
ढला बादल
नदी के आगोश में
हुआ पागल
लिये बाँहों में वह
प्रेमिका -सी सोई।
3
मन वैरागी
निकट रह तेरे
राग अलापे,
सिंदूरी सपने ले
बुने प्रीत के धागे।
4
मन मगन
नाचता मीरा बन
इकतारे -सा
बज रहा जीवन
प्रीत नन्द नन्दन!
5
रवि -सी तपी
गगन पथ  लम्बा
ये प्रेमपथ ,
है बहुत कठिन
तेरा अभिनन्दन!

Sunday, September 2, 2018

643-डॉ. सुरेन्द्र वर्मा


क्षणिकाएँ
डॉ.सुरेन्द्र वर्मा
1
घटता बढ़ता रहता है
चाँद
टूटते तो बस
सितारे ही हैं।
2
वही गीत
फिर से गाओ
कि नींद आ जाए।
3
चिड़ियों के कलरव से
पत्तियाँ हिलती हैं
आओ, मेरी डाल पर बैठो।
4
यह दर्द है
शरीर का रक्त नहीं,  
जो चोट खाकर
बाहर आ जाए ।
5
कौन नहीं है
जो नहीं उठाता
लाचारी का फ़ायदा
बस लाचार के ही
बस का नहीं है।
6
अभी तो बच्चा है
हाथ थाम कर चलता है
चलना सीख ले
फिर रुकता नहीं प्यार।
7
तुम तो चली गईं
लेकिन यादों की महक
यहीं कहीं
मँडराती रहती है
आसपास
8
जो चला गया
लौटता नहीं
जो लौट आया
गया ही कहाँ था !
9
यादें
कहीं बुझ न जाएँ
ले लिया करो
कभी उनकी भी सुध ।
10
खुशगवार है खुशबू
फूल को डाल पर ही
इतराने दो।
11
मैं मौन रहा
लेकिन शब्द गूँजते रहे
कविता में बनकर
कागज़ पर उतरते रहे।
-0-१०, एच आई जी / १,सर्कुलर रोड ,इलाहाबाद -२११००१  
-मो. ९६२१२२२७७८
 

Saturday, September 1, 2018

642-कृष्णा वर्मा


कृष्णा वर्मा ( कैनेडा )
1
अक्सर ख़ामोशियाँ
लिख जाती हैं
सरसरे  तरीके से
गहरी कविताएँ।
2
जलती है रोज़ वह भी
चूल्हे की लकड़ियों-सी
वे बुझकर राख हो जाती हैं
और वह सुलगती रहती है।
3
तू क्या गया
मैं तो मरों से
बदतर हो गई।
4
चाँद अकेला नहीं करता
राहों को रौशन
उसकी दमक में
शामिल होती हैं
अनगिन तारों की लौ।
5
अपने ही जाए
छीन कर ले गए
बुढ़ापे का सहारा।
6
ऐसा नहीं कि
उठाते नहीं लोग
तुम्हें भले नहीं
पर उठाते हैं
तुम्हारा फ़ायदा।
7
भाप बनकर
उड़ता जा रहा है प्रेम
जबसे
अहं का सूरज
खुश्क़ करने लगा है
रिश्तों का समंदर।
8
उन नींदों का
कैसे करूँ
शुक्रिया अदा
जिन्होंने वार दिया
अपने हिस्से का सुकून
मेरे ख़्यालों की
सूरत गढ़ने में।
9
कितना गिरोगे
दोस्त कहकर
भोंक देते हो ख़ंजर
गले मिल के।
10
तुम्हारे प्रेम के लिए
मैंने ख़ुद को किया पार
और तुम
सहज चल दिए
बेख़बर
मुझे छोड़कर
लहरों की ज़मीं पर।
11
चुपचाप पड़ी थी
अकेले में आँखों को मूँदे
फिर कौन कर रहा था
गुफ्तगू   मुसलसल।
12
झाड़के उदासियाँ
साध स्वयं को
उदासियों का नहीं
कोई एतबार
कब
बना दें किसी को बुद्ध।
13
ग़ज़ब का हुनर है
पुरानी यादों में
झट से थामकर
रख देती हैं
चलती हुई ज़िंदगी।
14
पाएँ तो कैसे
गिरवी पड़ा  है
सुकून
कर्तव्यों के
महाजन के पास।
15
यूँ तो सच है कि
वक़्त ठहरता नहीं
करके देखिए कभी
इंतज़ार
करोगे शिकायत वक़्त से
कि ठहर क्यों गया।
16
गाहे बगाहे जब चाहे
चली आती हैं यादें
जानती हैं रोकेगा कौन
दिल की चौखट पर
कब होते हैं दरवाज़े।
17
न अधर खुले
न प्रीत झरी
न निगाहें मिलीं
न इकरार हुआ
मख़्मली ख़्यालों में
धड़का मेरी
पलकों का दिल
जब तेरे होंठों ने
मेरी मुँदी
आँखों को छुआ।
18
मत सोच कि
छुपा लेगा तू उससे कुछ
वह तो
वह भी समझ लेता है
जो
तूने कभी कहा भी नहीं।
19
उम्र के सफ़र मे
महकती रहीं ख़्वाहिशें
ग़ज़ब की नेमत थी
तेरी मौजूदगी की तासीर।
-0-
क्षणिकाएँ