कुछ पास कुछ दूर बहनें
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
दुनिया का ऊँचा प्यार बहनें
गरिमा- रूप साकार बहनें
रेशमी धागों से बँधा है
हैं सभी अटूट तार बहनें ।
कुछ हैं पास ,कुछ दूर बहनें
सभी आँखों का नूर बहनें
हमको सभी की याद आती
जब याद आती ,है सताती ।
गहरे समन्दर ,पार हैं कुछ
वे बहुत कम ही इधर आती
आराम से हैं - वे बताती
अपने सभी वे दुख छुपातीं ।
पर फोन पर आवाज़ सुनकर
मैं तो सभी कुछ जान जाता
गीले नयन मैं पोंछ उनके
मन ही मन में यही मनाता-
सब दुख मुझे मिल जाएँ उनके
चेहरे खिल जाएँ उनके
न आँच उनके पास आए
कोई पीर न उनको सताए ।
और बहनें जो इस पार हैं
वे दोनों घरों का प्यार हैं
बहुत काम सिर पर है उनके
वे भी बहुत लाचार हैं ।
परदेस में बैठा है भाई
निहारता सूनी कलाई
घिरता नयनों में बचपन
फिर घुमड़ उठती है रुलाई ।
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