रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1सेदोका
1
लो
शाम हुई
भोर के स्वप्न
मरे
दोपहर रो
पड़ी,
प्यार खो
गया
धूल भरी आँधियाँ।
नीड
तोड़ती गई ।
[कैनेडा-3-40 अपराह्न-24 जुलाई-2014;भारतीय
समय: 25 जुलाई पूर्वाह्न 1-10 बजे,माता जी की मृत्यु से 10 मिनट
पहले]
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मुक्तक
1
सूरज की किरनों का जग में व्यापार नहीं होता ।
अपनेपन से बढ़कर रिश्तों का सार नहीं होता
।
जिसको चाहा दो
पल उसको सब कुछ करना अर्पण
बदले में कोई कुछ माँगे , वह प्यार नहीं होता
।।
2
बोझ ज्ञान का ढोकरके कोई गुणवान् नहीं बनता
,
जड़े खोदकर औरों की नेक इंसान नहीं बनता ।
सारा जीवन जिया है जिसने केवल अपनी खातिर ,
है अभिशाप का
रूप वह ,कभी वरदान नहीं
बनता ।।
(16 अगस्त-14)
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