पथ के साथी

Monday, August 18, 2014

लो शाम हुई

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1सेदोका
1
लो शाम  हुई 
भोर के स्वप्न मरे
दोपहर रो पड़ी,
प्यार खो गया
धूल भरी  आँधियाँ।
नीड तोड़ती गई ।
[कैनेडा-3-40 अपराह्न-24 जुलाई-2014;भारतीय समय: 25 जुलाई पूर्वाह्न 1-10 बजे,माता जी की मृत्यु से 10 मिनट  पहले]
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मुक्तक
1
सूरज की किरनों का जग में  व्यापार नहीं होता ।
अपनेपन से बढ़कर रिश्तों  का सार  नहीं  होता  
जिसको चाहा  दो पल उसको सब कुछ  करना अर्पण
बदले में कोई  कुछ माँगे , वह प्यार नहीं होता ।।
2
बोझ ज्ञान का ढोकरके  कोई गुणवान्  नहीं  बनता , 
जड़े खोदकर औरों की नेक इंसान नहीं बनता  
सारा जीवन जिया है जिसने केवल अपनी खातिर ,
 है अभिशाप का रूप वह ,कभी  वरदान नहीं  बनता ।।
(16 अगस्त-14)
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