रश्मि विभा त्रिपाठी
तुम ज़िन्दगी का दूसरा नाम हो
मेरा सुख-चैन, मेरा आराम हो
तुम पराग, तुम खुश्बू की डली
तुम एहसास मखमली
तुम बागबान,
आई
अभिसिंचित चली
तुम तितलियों की धुन में
तुम भँवरों की गुनगुन में
तुम गीत में, तुम गति-लय-यति में
तुम दिखते हो मुझको रघुपति में
तुम सागर, तुम नदिया
अतृप्त कभी रहने न दिया
तुम सीकस में मीठा झरना
जिंदगी की धूप से
अब भला क्या करना!
तुम तपन में छाँव हो
तुम मेरे सपनों का गाँव हो
तुम बादल-नर्म रुई के फाहे
तुम स्वाति बूँद, तुम्हें पपीहा चाहे
तुम किरन, तुम चाँदनी
मेरे आँगन में बिखरी हीरे की कनी
तुम पूनम की रात हो,
तुम सुनहरा प्रात हो
तुम एक सीधी, सरल,
सच्ची बात हो
तुम फरहाद, तुम मजनूँ ,
तुम राँझा,
तुम एक घर के दो परिवारों का
चूल्हा साँझा
तुम मोनालिसा हो, तुम कला हो
मुझको तुमसे मिलाया,
तकदीर का भला हो!
तुम मूरत हो अजंता की
तुम सुंदर रचना नियंता की
तुम झील, तालाब, कुँआँ, बाबड़ी
तुम पानी भरने को एक पनिहारिन खड़ी
तुम जाड़े की गुनगुनी धूप
तुम हल्दी की रस्म के बाद
होने वाली दुलहिन का निखरा रूप
तुम स्वेटर बुनती
माँ की सलाई पर लूप
तुम शगना दे गीत,
तुम पावन प्रीत
तुम मेह, तुम पुरवाई
तुम सावन की घटा छाई
तुम नीम की डाल पर झूला
तुम हर गम भूला
तुम बच्चे की किलकारी
तुम माँ देवकी, यशोदा, तुम गिरधारी
तुम शास्त्र, तुम वेद ऋचा
तुम माता की चौकी पर आसन बिछा
तुम ज्ञात, तुम अज्ञात
तुम जल प्रपात
सुलगते विरह की आग ठण्ठी
तुम संस्कृत साहित्य के महाकवि दण्डी
तुम सफर के साथी
तुम हाथ में हाथ लिये
मैं चलती जाती
तुम विभावरी, तुम चंदा
तुम इस धरती पर एक नेक बंदा
तुम माँग के सिंदूर में
मेरे चेहरे के नूर में
कोई गलती, कुसूर में
माफी देना ही तुम्हारे दस्तूर में
तुम जंगल पहाड़ में
मेरे पीछे- पीछे चलते
सुरक्षित मुझे करते
कौन धँसेगा बाड़ में
तुम पतंग, जिसका माँझा हूँ मैं
तुम्हें कटने नहीं दूँगी, पूरी ढील देती रहूँगी
तुम धागा, तुम सुई, तुम इंचटेप
रिश्तों को मापते, कुतरे रिश्तों पर थिगड़ी लगाते तुम
तुम कविता में, तुम छंद में
तुम रस की परिभाषा, आनंद में
तुम एक उत्कृष्ट विधा हो
लक्षणा, व्यंजना, अभिधा हो
तुम बचपन का जमाना
बच्चों का बारिश में नहाना
पानी की कश्तियाँ चलाना
और अपने आप पर इतराना
तुम सुबह मेरी, तुम सुरमई शाम हो
दिन भर जो मैंने किया, तुम वो खास काम हो
तुम पहाड़ के पीछे दुबका सूरज
तुम रात पूरनमासी की
तुम खुशी, मिटी उदासी
तुम देव मेरे, मैं तुम्हारी दासी
तुम पहली नजर का पहला प्यार
तुम मेरी उम्मीद, मेरी हसरत और इंतजार
तुम आरती के दीप में
तुम जैसे- मोती सीप में
तुम मेरे मन्दिर के देवता
अपनाओगे- ठुकराओगे नहीं पता
तुम माँ की लोरी
तुम गोदान का होरी
तुम दीवाली होली
तुम आँगन की रंगोली
तुम इंद्रधनुष
मेरे लिए तुम महापुरुष
तुम इस फिजा में
बहार हो खिजाँ में
तुम नाव, तुम पतवार
ले ही चलोगे मुझे उस पार
तुम मेरे माथे की बिंदी
तुम भाषाओं में हिन्दी
शबरी के बेर खाते राम हो
तुम नयनाभिराम हो
तुम निष्काम
तुम राधा के श्याम
तुम खनकता साज हो
मेरी चुप्पी की तुम आवाज हो
तुम दाल में नमक,
तुम बेहतरीन स्वाद
आवश्यकतानुसार नहीं
आवश्यक रूप से
हर पल चूल्हे में पकती है
तुम्हारी याद!
तुम कल्पना कवि की
तुम रश्मि हो रवि की
तुम एक नादान बच्चा
जिसके लिए सब सच्चा और अच्छा।
जो खेलता है आइस पाइस धप्पी
तुम जादू की झप्पी
तुम तीज त्योहार, तुम सोलह सिंगार
तुम चूड़ियाँ की खनक
तुम हथेली पर
मेंहदी के रंग की धनक
तुम शरीर, मन, आत्मा तक
तुम पाँव का आलता
तुम हो तो, कहाँ कोई दुख सालता?
तुम सुहाग मेरे, मैं तुम्हारी सुहागन
तुम आह्लाद, तुम उमंग, मैं हैँ मगन
तुम बन्दिगी, तुम हर खुशी
और
तुम ख्वाब, तुम हकीकत
तुम न जाने
कब और कैसे आँखों में आ बसे,
और बन गए मेरी अकीदत
तुम मेरी आत्मा और मन
तुम धड़कन का स्पंदन।
तुम मैं
मैं तुम
जहाँ देखूँ
जिधर देखूँ
तुम्हें हर जगह मैं पाती
ओ मेरे मीत! तुम मेरे प्राण की थाती।
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