पथ के साथी

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Thursday, March 13, 2025

1455

 

प्यार से अधिकार से/ स्वाति बरनवाल

 


तुम्हें बुला रहे कब से

प्यार से, अधिकार से!

 

तुम शहर के

मैं गाँव की

ये दिन फाग के

सज रहे रंग और राग से!

 

ख़्यालात रहे प्यार के

नशा छा होली से!

 

दही-बड़े उरद के

बर्फी सजी केसर से

स्वाद रहा इलायची का

असर रहा भाँग से!

 

घाघरा रहा रेशम का

चुन्नी टँकी मोतियों से!

 

चेहरा रहा लाल

मलती रही गुलाल

बंसी रही बाँस की

बजती रही साज से!

 

चलो सींचे जीवन सुंदर

प्यार से अधिकार से!

-0-

Friday, October 11, 2024

1435

 

1-रात प्रहरी /  डॉ. सुरंगमा यादव

 


रात प्रहरी

कैसे आऊँ मैं प्रिय

लाँ  देहरी

वर्जनाएं तोड़ भी दूँ

जग से मुखड़ा मोड़ भी लूँ

पर न चाहूँगी प्रियवर!

मैं कोई आक्षेप तुम पर

मैं रहूँ जब  दूर तुम से

चाँदनी का ताप सहती

चाँद का सहती उलाहना

मन मेरा भी कमलसा है

और भाती है-

मधुप की मधुर गुनगुन

पर नहीं मैं चाहती हूँ

प्रेम को बंदी बनाना

-0-

 


2-स्वाति बरनवाल

 1-हितैषी

 


वे हमारे हितैषी बनकर आ

उन्होंने बताया कि तुम्हारे

हाथों में यश है और 

पैरों में बेड़ियाँ

मैं निहाल हो उठी,

उन्होंनें मुझे मेरे अस्तित्व का भान कराया।

 

उन्होंने कहा- तुम तीर हो

ख़ूब दूर तक जाओगी,

बस! साथ जुड़ी रहो!

दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करोगी।

 

उन्होंने कहा- मैं तुम्हारें पैरों में 

बेड़ियाँ नहीं रहने दूँगा,

मैं उन्हें काट फेकूँगा।

मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।

 

मैंने दाँतों तले उँगली दबा और 

अपने पैरों को थोड़ा पीछे खींच लिया।

 

ठहरो!

वे शिकारी नहीं;

बल्कि हमारे हितैषी थे।

उन्होंने मेरे पैरों की बेड़ियाँ खोलीं

और अपनी कमान में साधने लगे,

उन्होंने मुझे शिकार नहीं,

बल्कि...

अपने शिकार का जरिया बनाना चाहा।

-0-

 

2-संझा -बाती

 

दोपहर की तपिश में 

जैसे जैसे 

चढ़ती हैं सीढ़ियाँ

फूलती है उनकी सांसे और 

उतरते- उतरते  रुँध जाता है गला.

 

जाने कितनी ही औरतें हैं 

जो कुहकती है

सिसकती हैं और 

पलटवार न करने में ही आस्था रखती हैं।

 

देव- मंदिर की किसी पवित्र दिये की 

मद्धम लौ की भाँति 

आधी सोई, आधी जागी 

उनकी आँखें 

कितनी निश्चल और शांत 

इस इन्तजार में कि 

भक्तों से अटा उसका

प्रांगण खिलता है 

परंतु

देवताओं के प्रवेश से 

खुल जाते हैं उनके मन के कपाट

 

जीवन है संझा बाती 

और उसकी लय, गति और यति।

-0-

Saturday, February 3, 2024

1401

 

1-मेरे राम

डॉ . शिप्रा मिश्रा

 


हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

जन- मन के अनुरागी राघव

हर्ष- विषाद समभागी राघव

कमल नयन को निरख रही

मैं कितनी बड़भागी राघव

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

एक कुलश्रेष्ठ समग्र स्वयंवर में

वही श्रेष्ठ संपूर्ण आगत वर में

विदेह की भू जो पावन कर दी

सौभाग्यवती होऊँ उस कर में

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

सूर्यवंश के अविजित उद्धारक

प्रजा स्नेही उनके प्रतिपालक

हैं धीर- वीर वे धनुर्धर योद्धा

ज्ञान विवेकी स्थितप्रज्ञ संचालक

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

उन्हीं से जनम कर उन्हीं में समाना है

उन्हीं की शक्ति से अंधेरे को हराना है

हे राम! मुझमें हों समाहित समादृत

भाव पुष्प से उन तक पहुँचना है

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

-0-

2-स्वाति बरनवाल

अकेलेपन से जूझते हुए

 


दुखी हृदय  ढूँढा  नहीं जाता

आसानी से मिल जाता है,

राह चलते,

सरेआम सड़कों पर!

जेब्रा क्रॉसिंग पर रुकी

गाड़ियों की तरह।

भीड़ से लदी हुई, सीटी बजाती हुई।

 

आषाढ़,

सावन,

भादो की बारिश में

भीगना तो है,

महज़ एक बहाना

अपने ऑंसुओं को छुपाने का!

 

अकेलेपन से जूझते हुए

वे चाहते हैं!

आशीर्वाद में मिलें एक जीवंत एकांत

जिसमें झेला जा सकें

लोगों का दंभ

पाई जा सके अकेलापन से निजात

और जिया, जा सके अपने हिस्से का एकांत।

 

••••••

-0-

 

2-बुद्धि की रोटी

 

खैर! छोड़ो!

ये तो पहले की बात थी

जब लोग बहाते थे पसीने,

जोतते थे खेत,

और चलाते थे हल!

 

उपजाते थे अनाज,

खाते थे मेहनत की दो रोटी!

मिटती थी भूख उनकी

और वो रहते थे सदा तृप्त।

 

अब की बात और है!

 

आज सुखी है वही

जो चलाता है दिमाग

साइकिल के पहियों से भी तेज़!

और खाता है

केवल और केवल

बुद्धि की रोटी!

 

जिससे तृप्त होते हैं

एक बुद्धिजीवी के तन-मन,

उनकी अतृप्त, असंख्य इच्छाऍं!

-०-

स्वाति बरनवाल (अध्ययन)

 ग्राम - कठिया मठिया, , जिला - प० चंपारण, बेतिया (बिहार)-- 845307

Sunday, January 21, 2024

1400

 1-शशि पाधा



 1- लौट आये श्री राम -दोहे

1

जन्म स्थली निज भवन में, हैं श्री  राम।

मुदित मन जग देखता, मूरत शुभ अभिराम ।।

2

दिव्य ज्योत झिलमिल जली, राम लला के धाम।

निशि -तारों ने लिख दिया, कण- कण पर श्री राम।।

3

स्वागत में मुखरित हुई, सरयू की जलधार

पावन नगरी राम की , सतरंगी शृंगार ।।

4

शंखनाद की गूँज में, गुंजित है इक नाम।

पहने अब हर भक्त ने, राम नाम परिधान।।

5

उत्सव मिथिला नगर में, सीता का घर द्वार।

रीझ-रीझ भिजवा दिया, मिष्टान्नों का भार।।

6

प्रभु मूरत है आँख में, अधरों पे है नाम।

अक्षर- अक्षर लिख दिया, मन पृष्ठों पे राम।।

7

आँखों में करुणा भरी, धनुष धरा है हाथ।

शौर्य औ संकल्प का, देखा अद्भुत साथ।।

8

वचनबद्ध दशरथ हुए, राम ग  वनवास।

धरती काँपी रुदन से, बरस गया आकाश।।

9

राम लखन सीता धरा, वनवासी का वेश।

प्राणशून्य दशरथ हुए, अँखियाँ थिर अनिमेष ।।  

10

माताओं की आँख से, अविरल झरता नीर।

कैसी थी दारुण  घड़ी, कौन बँधा धीर।।

11

पवन पुत्र के हिय बसे, विष्णु के अवतार।

पापी रावण का किया, लंका में संहार।।

12

जन रक्षा ही धर्म है, दयावान श्री राम।

 हितकारी हर कर्म है,जन सेवा निष्काम।।

13

 अभिनन्दन की शुभ घड़ी, जन जन गा गीत।

 दिशा दिशा में गूँजता,  मंगलमय संगीत।।

14

घर घर मंदिर सा सजा, द्वारे  वन्दनवार।

धरती से आकाश तक,लड़ियाँ पुष्पित हार।।

-0-वर्जिनिया, यूएसए

 -0-

-2-श्री राम आज घर लौट आ



          

 मेरी  अँखियों में राम

मेरे अधरों पे नाम

मेरे रोम- रोम राम समा

राम लला आज घर लौट आ

 

छवि देखते यूँ युग- युग जी लिया

घूँट-घूँट राम-नाम रस पी लिया

मेरे ओढ़नी पे राम

भाल बिंदिया में नाम

कोई और न  मोरे  मन भा

 

इत-उत मेरे राम ही  खड़े हैं

मणि-मोतियों से मन में जड़े हैं

 बीन तार गा राम

सुर ताल गा राम

मन झूम -झूम राम गीत गा

 

धूप-दीप से थाल मैं सजाऊँगी

फूल पंखुड़ी के हार बनाऊँगी

जहाँ लिखूँ राम-नाम

वहीं मेरा चार धाम

मोह- माया मुझे अब न लुभा

-0-

2- डॉ. सुरंगमा यादव

-राम आहैं

 

स्वाति बरनवाल

श्री राम भवन में पधारे

 लो जागे भाग्य हमारे

 मन मुदित हुए हैं सारे

 आनंदघन चहुँ दिसि छाए हैं

 राम आए हैं राम आए हैं

 सज गई अयोध्या सारी

 झूमें- नाचें नर- नारी

 अँखियाँ जाएँ बलिहारी

 श्री राम ने दरश दिखाए हैं

 राम आए हैं, राम आए हैं

 झुक रही सुमन की डाली

 चलती है हवा निराली

 त्रेता-सी जगी दिवाली

 मन- देहरी दीप सजाए हैं

 राम आ हैं राम आए हैं

 सदियों आस लगा

 शुभ बेला तब ये आई

अपलक है दृष्टि लगा

 प्रभु बाल रूप दिखलाए हैं

 राम आए हैं राम आए हैं।

-0-

3- गुंजन अग्रवाल

राम रमैया आए हैं

 

मान्या शर्मा

राम रमैया राम रमैया राम रमैया आए हैं ।

अवध सजी है जैसे कोई दुल्हन ने शृंगार किया 

सरयू की पावन धारा ने श्री हरि का सत्कार किया । 

संग गौरा के करते शंकर ताता थैया आए हैं । 

राम रमैया...............

 

ढोल नगाड़ों की धुन पर नर नारी नर्तन करते हैं । 

चौखट तोरण बांधके दहली दहली सतिया  धरते हैं ।

बृंदावन से राधा के संग  रास रचैया आए हैं । 

राम रमैया.................

 

मिथिला के पाहुन का मुखड़ा देख धरा इतराई है ।

पवन ने  ‘पीली सरसों फूली इधर उधर छितराई है ।

मेरी जीवन नैया के हाँ आज खिवैया आए हैं ।

राम रमैया....................

२६०, ग्राउंड फ्लोर

अशोका एनक्लेव मैन 

सेक्टर ३५ फरीदाबाद (हरियाणा)

मोब 9911770367