पथ के साथी

Sunday, August 15, 2021

1126

 

1-    क्षणिकाएँ

डॉ. सुरंगमा यादव
1
बिखरा -बिखरा था मन
तेरे वादों ने आकर
समेट लिया।
2
जीवन में हो न हो
मन में सभी के
पलता है प्रेम।
3
चित्रकार नहीं हूँ
तुमसे मिली तो
सीख गयी रंग- संयोजन।
4
सीली दीवारें
पैच लगाया पर
उभरी सीलन।
5
पीड़ा गहरी
कभी न कभी आकर
मुख पर ठहरी।
6
जब टूटे सहारे
आँखों की ज़द में
थे किनारे।
7
हुआ विह्वल
फिर सीख गया मन
परिस्थितियों को जीना।
8
कैसा ये प्यार
रेतीले तट पर
नाव खेना दुश्वार!

-0-

2-आज़ादी का मोल / कृष्णा वर्मा

 

सारी सलेटें मिटाईं थीं

सारी कड़ियाँ तोड़के

ख़ून से लकीर लगाई थी

तब कहीं पाई थी

यूँही नहीं मिली थी आज़ादी

उजडीं थीं अनगिन माओं की कोख

छिन गई थी राखियों से कलाइयाँ

बेरंग हुए थे असंख्य माँगों के सिंदूर

टूट गई थीं पिताओं के बुढ़ापे की लाठियाँ

मिट गए थे सरमाए

जवान बच्चियों को ज़हर के निवाले दे

किया था कुँओं तालाबों के सुपुर्द

चीरकर अपने कलेजे पाई थी

यूँही नहीं मिली थी आज़ादी 

छाती पर गोलियाँ 

गर्दनों पर छुरियाँ और पीठ पर पड़े

कोड़ों के निशान

साक्षी है आज़ादी की क़ीमत के

बलिदानों की ईंटों से

भरी थी आज़ादी की नीव

मृत्यु का वरण किया था तब पाई थी

यूँही नहीं मिली थी आज़ादी 

आज़ादी की अंधी दौड़ में

छूट गए अपनों से अपनों के हाथ

लापता हो गए रिश्ते-नाते मित्र संबंधी

टुकडों-टुकड़ों में बँट गए

धर्म- जाति, भाषा -बोलियाँ

कोसों दूर छूट गईं थीं यारियाँ

तड़पड़ाके रह गया प्यार- मोहब्ब्त

आज भी टँगी हैं पलकों पर यादें

अपनों के सपनों में रंग भरने को

हँस-हँसके सूलियों पर लटके थे

आज़ादी के दीवाने

असाध्य को साधा था तब पाई थी

यूँही नहीं मिली थी आज़ादी

सूख नहीं पाया कभी 75 साला सैलाब

मरते दम तक भीगा रहा माँओ का आँचल

उठती रही कलेजे में हूक

सब्र के आँसुओं से धोती रहीं

दिल के ज़ख़्म

लहू से सींचा था धरा का आँचल

तब जन्मा था तिरंगा

बड़ा भारी मोल चुकाया तब पाई थी

यूँही नहीं मिली थी आज़ादी 

दुविधाओं से जूझ-जूझ के देश संवारा है

वीरों के ख़ून से निखारा है

तिरंगा महज कपड़े का टुकड़ा नहीं

इसमें गुँथे हैं बलिदानों के किस्से

शौर्य की गाथाएँ

पहचान है यह मान है हमारा   

विश्व में रहे अग्रिम बुलंद हो सितारा 

तिमिर का वक्ष चीर पाई है आज़ादी

आज़ाद रहे आबाद रहे हिन्दुस्तान हमारा।

1125-आज़ादी के मायने

 रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

 

आज 15 अगस्त है


आँख खुलते ही

आज़ादी  के मायने

याद आए

जो ज़्यादातर के लिए

यही हैं

बिल्कुल सही हैं

कार्य-स्थल पर

कुछ नारे लगवाने हैं

देश-भक्ति के गीत गाने हैं

अमर शहीदों को

श्रद्धांजलि-सुमन

अर्पित कराने हैं

बच्चों के हाथों में

तिरंगे थमाने हैं

बूँदी के दौने

बँटवाने हैं

कुछ घर के लिए

बचाने हैं

आखिर उन्हें भी तो

ये उत्सव मनाने हैं

रैली निकाली जानी है

एक सभा

आयोजित करानी है

अपना पक्ष

गम्भीरता से रखना है

भाषण में करना है

परतन्त्रता का विरोध

स्वतंत्रता में बड़ा अवरोध

जो सदा से है

फिर साहब को

घर वापस जाना है

स्व-सुविधा हेतु

कुसुमा पर

दिन भर हुकुम चलाना है

शोषण मुक्ति की बात

साहब

मजदूर दिवस पर अगली बार करेंगे

फिर भाषण दे दासी का उद्धार करेंगे।