पथ के साथी

Sunday, May 28, 2023

1322-जीवन का पहिया


















जीवन का पहिया ( लघु व्यंग्य)

  रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

कोरोना की तरह वह चुपचाप कहीं भी घुस जाएगा, गज़ब का है यह प्राणी। यह सुबह नहा धोकर पूजा करता है। मनोयोग से आरती करता है। सादा भोजन करके अपने ऑफिस के लिए निकलता है।

ऑफिस में पहुँचकर कुर्सी पर बैठने से पहले कुर्सी को नमन करता है, टेबिल को छूकर माथा झुकाता है।

   दिनभर सिर झुकाकर अपने काम में लगा रहता है। चुपचाप जो कमाई होती है,उसका आधा हिस्सा अपनी जेब में रखकर,आधा अपने अफसर को भेंट कर देता है।

  रात में खाना खाने के बाद  पहले धार्मिक सीरियल देखता है। अरुचि होते ही कोई अपराध सीरियल देखने लगता है। इससे भी ऊब जाएँ, तो ज़ुबान पर गिलोय के रस का लेप करके बोलना शुरू कर देता है। सोने से पहले सभी निकटवर्ती साथियों की खबर लेता है। जब थक जाता है तो सोने चला जाता है।

नींद में बुरे- बुरे सपने आते हैं, तो पत्नी को कोसता है-'मुझे बुरे सपने क्यों आते हैं,बताओ!'-झकझोरकर पूछता है।

    हाँफते- हाँफते थककर फिर सो जाता है। सुबह भगवान का नाम लेकर अँगड़ाई तोड़ता है और उबासी लेकर फिर जग जाता है,आज की दिनचर्या के लिए।

-0- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’