पथ के साथी

Showing posts with label डॉ. पूर्वा शर्मा. Show all posts
Showing posts with label डॉ. पूर्वा शर्मा. Show all posts

Friday, May 22, 2020

991-पते ज़िन्दगी वाले


डॉ.पूर्वा शर्मा
1.
बदल ही गए सारे पते ज़िन्दगी वाले
पर आज भी तेरा पता... मेरा दिल ही ।
2.
बहुत खोजा हमने ज़िंदगी को
कमबख्त़ तुम्हारे बिन कहीं मिली ही नहीं ।
3.
मेरे शब्दों में बस तुम्हारी ही बस्ती
और लोग समझते मैंने कविता रच दी  
4.
तू नहीं तो शायद तेरी महक ही मिल जाए
यही सोच कर हम शहर की सभी गलियाँ घूम आए ।
5.
गुजरे होंगे तुम इसी राह से शायद....
यही सोचकर हम भी इसी राह पर चल दिए ।
6.
अच्छा है तुम मिलते नहीं हमसे
यूँ भी तुम्हारी यादों से फुरसत नहीं हमें ।
7.
सूनी सड़क और ये खामोशियाँ
सुना रही तेरी-मेरी कहानियाँ ।
8.
हवा महककर कह रही
कि तुझे ही चूमकर आ रही ।
9.
कभी तो ख़्यालों से निकलकर बाहर आओ
और हमें कसकर गले लगाओ ।
10.
बिक चुकी
हर धड़कन-साँसें मेरी,
खुशनसीबी यही
खरीदार तुम ही
11.
तन से दूर, मन से पास
सबसे सुन्दर ये अहसास
12.
बात यह नहीं कि वो ज़िंदगी में नहीं है
बात इतनी-सी है कि वो ही ज़िंदगी है

Thursday, March 26, 2020

963-आदमी लापता


1-तेवरी*(विमोहा -( राजभा राजभा)
रमेशराज

ज़िन्दगी लापता
रोशनी लापता।

फूल जैसी दिखे
वो खुशी लापता।

होंठ नाशाद हैं
बाँसुरी लापता।

लोग हैवान-से
आदमी लापता।

प्यार की मानिए
है नदी लापता।
-0-
2-आजकल-डॉ.पूर्वा शर्मा
1 
कुछ दिनों से हवाओं का रुख बदला है
खुश है परिंदे कि पूरा आसमाँ सिर्फ उन्हें मिला है ।
2  
आजकल सहर में इक नशा-सा है 
गुम हुआ शोर,
पंछियों की चहचहाट से मौसम खुशनुमा-सा है ।
3  
घरों में बंद सभी इंसान 
दूर हुए काले धुएँ के निशान
आसमाँ के चेहरे पर खिली मुस्कान ।
4  
एक नन्हे- से प्राणी ने छेड़ी ऐसी  विध्वंसक तान
मनुष्य सहमा, थमा फिर उसने गाया एकांत गान 
तुच्छ प्राणी ने धरा से चाँद तक अपना हक़ जताया
उसके अहंकार को देख प्रकृति ने उसे घर पर बैठाया ।
6
दूसरों से बातें तो हमेशा ही करते आया
बड़े अरसे बाद अपनों से बतियाने का अवसर पाया ।
7
थोड़ा परेशान और मुश्किलों से घिरा हूँ
बड़े दिनों बाद थोड़ा ठहरा हूँ
इसलिए कल का सूरज देखने को जिंदा हूँ

-0-
 3-मुश्किल बड़ी घड़ी है - डॉ.सुरंगमा यादव 


मुश्किल बड़ी घड़ी है 
संयम बनाए रखना 
एक फ़ासला बनाकर 
खुद को बचाए रखना 

है जिन्दगी नियामत 
असमय ये खो ना जाए
इस देश पर कोरोना
हावी ना होने पाए
ये वक्त कह रहा है 
घर से नहीं निकलना 

कुछ देर योग करके 
निज शक्ति को बढ़ाना 
संकल्प से ही अपने 
इस रोग को भगाना
हाथों को अपने साथी 
कई बार धोते रहना 

उनको नमन करें हम 
सेवा में जो लगे हैं 
सब कुछ भुलाके अपना 
दिन-रात जो जुटे हैं 
रहकर सजग हमेशा 
अफ़वाहों से भी बचना 

मुश्किल आज घड़ी है 
संयम बनाए रखना 
-0- असि. प्रो.महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना लखनऊ
-0-
4- माना खता हुईं -प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'

माना ख़ता हुईं, हमसे भी कईं
ख़ुद को न किया माफ़, सबसे बड़ी यही!

अपना ये हाल तो होना ही था,
ग़ैरों के हाल जो छोड़ दिया!!

आज़मा न इतना, मुझे ए दोस्त
कि ऐतबार से ऐतबार ही उठ जाए!

लौट आते हैं  गूँजके, ये जो तंज़ तेरे
कहीं इर्द गिर्द दीवारों का असर तो नहीं?

जो मिलने का बहाने ढूँढते थे कभी
'फिर मिलेंगें' कहकर न लौटे कभी।

सादगी की सुगंध का क्या कहिए!
ये इत्र अब सरेआम नहीं मिलता।

बहुत थोड़े में खुश हो जाती हूँ मैं
शायद इसलिए मुझे थोड़ा ही मिला!

दर-ब-दर भटका किए, दोस्तों की तलाश में,
खामोशियों से करें बातें, कभी सोचा ही नहीं!
-0-

Tuesday, March 24, 2020

961


1-डॉ.पूर्वा शर्मा
1  
इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ चमत्कार
एकता दिखाने के लिए अलग रहना ही उपचार ।
2 
बड़े दिनों बाद आया ऐसा इतवार
साथ बैठा रहा दिनभर पूरा परिवार,
सन्नाटे छाए गली-शहर
मौन हुए शामो-सहर,
दूरियाँ ही अब तो रास आए
कोरोना भगाने का यही उपाय
 3
 जाति-धर्म, प्रांत-देश 
भेदभाव कुछ नहीं मानता
समदृष्टि की भावना से
यह सभी को देखता
तुम भूल कोई करो ना
यह है निर्दय कोरोना ।
 4 
याद नहीं क्या करते थे कुछ दिनों पहले तक हम
अब कोरोना के चर्चे ही करते रहते हैं सब हम,
ध्यान तो बस जा रहा बार-बार इन्टरनेट की ओर
चिंतित होकर देख रहे बस पल-पल कोरोना-स्कोर,
कौन-सा देश, कितने आँकड़ों को किए जा रहा पार
इसे देख उठ रहे हैं मन में अनेक प्रश्न बारम्बा,
कैसे हल होगा ये मसला इसका उपाय सब जान लो
पहली बार मिला है मौका, इसको अब पहचान लो,
बिना कुछ किए, घर बैठे ही बचा लो अपने देश को
बिना छुए तुम दूर भगा दो अहंकारी इस वायरस को
-0-
2-पूनम सैनी

रोज किस्से सुनाने से क्या फायदा
अब हमको ज़माने से क्या फायदा
देख ये भी तमाशा गुज़र जाएँगे 
हो गए लब कही बंद तो देखना
कुछ इधर जाएँगे कुछ उधर जाएँगे

कोई गिरता है,गिर के गिरा ही रहा
कोई उठ-उठके चलता सदा ही रहा
तेरे बिन स्वप्न तेरे किधर जाएँगे 
लो सँभालो इन्हें वरना फिर देखना
कुछ बिखर जाएँगे,कुछ गुज़र जाएँगे

बीते लम्हों पे रोने से क्या फायदा
वक्त रो-रोके खोने से क्या फायदा
वक्त मरहम जख्म सारे भर जाएँगे
वक्त के पंख ख्वाबों को दे दे  ज़रा
कुछ निखर जाएँगे,कुछ सँवर जाएँगे
-0-

Saturday, September 14, 2019

930


1-मातृभाषा
सत्या शर्मा 'कीर्ति'

अकसर अपनी 
आंतरिक तृप्ति के पलों में
बो देती हूँ अपनी भावनाओं के कोमल बीज
जहाँ निकलते हैं शब्दों के नाज़ुक कोमल-से फूल
उन्हें हौले से तोड़कर
सजाती हूँ पन्नो के ओजस्वी कंधों को

वर्णों के रेशमी धागों को
बाँधती हूँ कलम की सशक्त कलाई पर
और छंदों की नावों संग घूम आती हूँ
गीतिका की लहरों पर
जहाँ  मात्राओं की अनगिनत उर्मियाँ
देती है जन्म
 किसी भावुक सी कविता को
तब अनायास ही खिलखिला
पड़ते हैं हजारों अक्षर
दीपावली के जगमगाते जीवंत दियों-जैसे
तब मेरे मन के पायदान से
उतर आते हैं कदम-दर-कदम
किसी देव पुत्र-से कहानियों के अनेक चरित्र
जो ले जाते हैं मुझे
किसी उपन्यास की खूबसूरत वादियों में

तब मैं और भी हो जाती हूँ समृद्ध  
जब सुसज्जित सी व्याकरणमाला 
करती है  मंगलाचरण हमारी मातृभाषा का
और फिर सौंदर्य से जगमगाती
हमारी तेजस्वी हिंदी
करती है पवित्र हमारी जिह्वा को 
करोड़ों हृदयों को करती है आनन्दित

और देती है आशीष हमें
हिन्दी भाषी होने का।
--0--
 ईमेल -- satyaranchi732@gmail.com

-0-
2-भिगोने के बहाने

डॉ. पूर्वा शर्मा
1.
चलो माना कि सारी ख़ताएँ मेरी,
सजा के बहाने ही सही
तुम एक बार तो रूबरू होते।
2.
कई दिनों से मुलाकात नहीं,
सोचा आज शब्दों से ही छू लूँ।
3.
समझता नहीं ये नादाँ दिल कि तू यहाँ नहीं है मौजूद
तुझसे मिलने की ज़िद पर अड़ा, ढूँढे तुझमें खुद का वजूद।
4.
न कोई आहट, न कोई महक
फिर भी आँखें करती इंतज़ार
हो रहा मन हरपल बेक़रार।
 5.
सब कुछ तो छीन ले गए,
उपहार में इंतज़ार दे गए.
6.
हर बार छूकर चले जाते
क्यों नहीं ठहर जाते
तुम समुद्री लहरों से मनचले
मैं किनारे की रेत-सी बेबस।
7.
इश्क़-सौदा... बड़ा महँगा पड़ा
वो दिल भी ले उड़ा,
बेचैनी देकर फिर ना मुड़ा।
8.
बड़ी कमाल
हमारी गुफ़्तगू
बिन सुने, बिन कहे
सदियों तक चली।
9.
ये बूँदें भी कमाल हैं ना?
भिगोने के बहाने तुझे आसानी से छू गई.
10.
मुझे तो ये बारिश भी तेरे प्रेम की तरह लगती है
थोड़ी-सी बरस कर, बस तड़पा और तरसा जाती है।
11.
तेरे बिन ना जाने ये राहे कहाँ ले जाएँगी
बस इतनी दुआ है कि इन राहों कि मंज़िल तू ही हो।
12.
कितना तड़पाओगे
बारहमासा तो बीत चला
ये बताओ तुम कब आओगे?
-0-



Sunday, August 25, 2019

925


1-बस यूँ ही  
शशि पाधा

जहाँ बर्तन 
 बात न करें 
जहाँ चीज़ें 
 तरतीब न भूलें 
और तस्वीरें 
टेढ़ी न लटकें 
जहाँ फलों की खुशबू
सॉंसों में न समाए
और पौधों को धूप 
 छू न पाए 
जहाँ मुस्कान 
उधारी में आए 
और नेह  
गिरवी हो जाए 
उसे घर कहें 
या ???????????
-0-

2- पथ प्रदर्शक!
डॉ. पूर्वा शर्मा

अरे ओ मार्गदर्शक,
पथ प्रदर्शक!
सदा दूसरों को
राह दिखाने वाला,
हौंसला देने वाला,
क्या हुआ है तुझे?
यूँ आहत न हो तू
हिम्मत न हार तू,
क्या हुआ यदि
मुखौटों उतरने लगे
कुछ मतलबियों के,
किसी के द्वार
बंद कर देने से
सूर्य चमकना
नहीं छोड़ देता,
अरे उन्मुक्त गगन में
विचरण करने वाले
यूँ घसीटकर
नहीं चल सकती
तेरी ये ज़िंदगी
तू दौड़ ख़ुशी से
पकड़ ले फिर
ज़िन्दगी की रफ़्तार,
वैसे भी धुल जाते हैं
कुछ रंग बारिश से,
तो कुछ न रंग
दे भी जाती है ये बारिश
दूसरी ओर देख तू
अब साफ़ है सब कुछ
भर दे अपनी तूलिका से
पसंदीदा रंग
इस ज़िंदगी में,
बहुत हसीन है
ये ज़िन्दगी
तू मुस्कुराकर तो देख।
-0-


Saturday, August 3, 2019

920-लबालब बड़ौदा


डॉ.पूर्वा शर्मा

लबालब बड़ौदा 

मगर   शब्द को क्लिक कीजिए


1.
श्रावण मास
ले बैठा वड़ोदरा
जल समाधि ।
2.
कैसा कहर
विश्वामित्री उफनी
डूबा शहर ।
3.
कजरी गाते
शहर में मगर
गश्त लगाते ।
4.
ढूँढते भोज
गली-शहर घूमे
मगर-फौज ।

5.
पार लगाती
एन डी आर एफ
जान बचाती  
6.
बाढ़ ने मारा
मानवता सहारा
कोई न हारा ।
7.
वर्षा तांडव
चीखे मेघ, तड़ित
धरा प्लावित ।
8.
डूबता कैसे?
लबालब बड़ौदा
हौंसला जिंदा ।
9.
माँगी थी बूँदें
मिल गया सागर
रॉंग नंबर ।
10.
जलीय बने
सिर तक पानी में
तैरते चले ।
11.
पार लगाते
वासुदेव दरोगा*
बच्ची बचाते ।
-0-
*वासुदेव की तरह पुलिस कर्मी ने नन्ही-सी बच्ची को सर पर उठा कर बाढ़ग्रस्त क्षेत्र से बचाया ।