1-अम्मा की याद
-डॉ.भावना कुँअर
आज
मुझे फिर अम्मा याद आई है
छूकर
हवा जब मुझको है लौटी
याद आई है मुझे अम्मा की रोटी।
नहीं भूल पाई हूँ आज भी-
उस रोटी की सौंधी-सौधीं खुशबू को
याद आई है मुझे अम्मा की रोटी।
नहीं भूल पाई हूँ आज भी-
उस रोटी की सौंधी-सौधीं खुशबू को
मिल
बैठकर खाने के
उस प्यारे से अपनेपन को
साँझ ढलते ही
नीम के पेड़ की छाँव में
अपनी अम्मा के
सुहाने से उस गाँव में
चौकड़ी लगाकर सबका बैठना
फिर दादा- संग किस्से कहानियाँ सुनना,सुनाना।
नहीं भूली मैं खेत-खलिहानों को
उन कच्चे- पक्के आमों को ।
उस प्यारे से अपनेपन को
साँझ ढलते ही
नीम के पेड़ की छाँव में
अपनी अम्मा के
सुहाने से उस गाँव में
चौकड़ी लगाकर सबका बैठना
फिर दादा- संग किस्से कहानियाँ सुनना,सुनाना।
नहीं भूली मैं खेत-खलिहानों को
उन कच्चे- पक्के आमों को ।
जब
अम्मा याद आती है
तब
आँखें भर-भर जाती हैं।
खोजती
हूँ उनको
खेतों
में खलिहानों में
उस
नीम की छाँव में
उन
कहानियों में,उन गानों में
पर
अम्मा नहीं दिखती
बस
दिखती परछाई है।
न
जाने ऊपर वाले ने
ये
कैसी रीत चलाई है
हर
बार ही किसी अपने से
देता
हमें जुदाई है
और
इस दिल के घरौंदें में
बस
यादें ही बसाई हैं।
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वे गलियाँ
भावना सक्सैना
कई धागों की उलझन से
कई डोरों की जकड़न से
विलगना है उन्हीं सब से
कभी चीज़ें जो प्यारी थीं।
कई किस्से पुराने थे
कई बन्धन सुहाने थे
हो विस्मृत याद वो सारी
यही कोशिश हमारी थी।
कहाँ आसान था ये सब
पिघल रहता मन बरबस
इरादे से हुआ पर अब
कठिन यात्रा ये न्यारी थी।
नहीं अब आँख में आँसू
गजब का शांत मन हरसू
के अब भूली हैं वे गलियाँ
हवा से जिनकी यारी थी।
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