पथ के साथी

Tuesday, June 13, 2017

745

कुछ है...

मंजूषा मन
  
कुछ है...
हवा के  झोंके- सा
गुज़रा जो करीब से
महक उठा अन्तर्मन
बिखर गए इंद्रधनुषी रंग
खिल आई होंठों पर मुस्कान
चमक उठीं आँखें
खिल उठे फिर मुरझाए फूल
चहक उठे मन के पंछी
पंख फैलाने लगीं तितलियाँ

और तुम...
मेरे भीतर से होकर
दिल को चीरते हुए
गुज़र रहे हो...
पल -पल धँसते जा रहे हो
तीर से,
टीस रहा कुछ
अजीब -सी चुभन है

मेरे वश में है
निकाल फेंकना ये तीर
पर मैं नहीं निकालती
मैं मुस्कुरा रही हूँ
मुझे सुकून दे रही है
ये चुभन, ये टीस....

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