पथ के साथी

Saturday, September 3, 2022

1239

-प्रीति अग्रवाल

क्षणिकाएँ

1.

ज़र्रा हूँ

ख़ाक में मिलकर

खुश हूँ,

आफ़ताब बनाकर

मुझे, अकेला न करो।

2.

एक दूजे की मंज़िल

हम दोनों ही हैं,

सफर खूबसूरत

यूँ हीं नहीं...!

3.

मैं दर्द की पोटली

छुपाती फिरूँ,

कौन हो तुम

तुम, सब टोहते हो,

कौन हो तुम

तुम, गिरह खोलते हो।

4.

माना

हुस्न फूलों का

दिलकश है

अज़ीम है,

मुझे कुछ और

जीनों दो,

मुझे

दूब ही रहने दो...!

5.

ऐ हवा

इक सन्देशा

मेरा भी लेजा

उसी तरफ होकर

तू है गुज़रती,

कहना कि साँस चलती है

यूँ तो हूँ ज़िंदा,

मगर ज़िंदगी है

उसी ओर बसती।

6.

आँसू,

अपनी कहानी

लिखने पर हैं आमादा,

परेशान है मगर

कि

धुली जा रही है।

7.

बानगी इश्क की

जब इबादत

हो गयी,

तन, मन

घुलता रहा,

और धुआँ

मैं हो गई... !

8.

जी रही हूँ मैं

बेखौफ

बेधड़क,

जी रहे हो तुम

बेखौफ

बेधड़क,

उसी

महफूज़ पते पर-

एक दूसरे का दिल!

9.

नेह की

बरसात में

मैं घुलती चली गयी,

केवल

तुम ही तुम रहे

मैं जाने कहाँ गयी!

10.

सोचती हूँ

जिसे सह गई,

उसे कह देती

तो क्या होता...

जवाब-

नीला आकाश

उन्मुक्त उड़ान

क्षितिज के पार

नईं मंज़िलें

नया जहान!

-0-

2-कपिल कुमार

1

सिन्धु के तट

उपद्रष्टा रहे

युद्धों की विभीषिका के

रणभेरी की नादों से

भयभीत हुआ होगा

हृदय किस-किसका

युद्धों के परिणाम

दर्ज करती

तटों पर रुक-रूक कर

सिन्धु दशकों तक

आलेखों में

कभी

किसी ने नही पढ़ा

इनको पढ़े बिना

लग जाते है,

नए युद्ध की तैयारी में। 

2

युद्धों की पृष्ठभूमि

कौन लिखता है

हृदय पर 

पत्थर रखकर। 

3

उतारे हैं

प्रेम के

सभी प्रारूप

हृदय-पटल पर

ध्यान से सुनते

सिन्धु के खामोश तट

तुम्हारी बातें

इसके विपरीत भी। 

4

हे बुद्ध!! 

"अहिंसा के प्रवर्तक"

क्या तुमने कभी सोचा

यशोधरा ने लड़े

मन के विरुद्ध

कितने युद्ध

-0-