पथ के साथी

Friday, November 2, 2007

चिन्तन


शिक्षक के लिए संकीर्णता से मुक्त होना अनिवार्य है ।जब लोग अन्तरिक्ष में जा रहे हों उस समय यदि शिक्षक वर्गवाद,जातिवाद ,सम्प्रदायवाद के गिजबिजाते कीचड़ में लोट लगाता रहे तो क्या होगा ?शिक्षक का प्रत्येक पल खुशबू-भरे फूल खिलाने का पल है ।वैमनस्य ,घृणा ,क्षुद्रता का प्रचार –प्रसार करने का नहीं ।कोई संस्कारवान् हो या न हो चलेगा ,लेकिन शिक्षक संस्कारवान् नहीं है ,नैतिक बल वाला नही है;वह बच्चों को अपनी कुण्ठा का विष ही पिलाएगा।वह अमृत लाएगा भी कहाँ से ।शिक्षक-अभिभावक का सम्बन्ध ढाल –तलवार का सम्बन्ध नहीं वरन एक दूसरे के पूरक का है।माता-पिता और शिक्षक में आपसी समझ तथा संवाद बना रहे तो बहुत सारी बालमनोवैज्ञानिक जटिलताओं का निराकरण हो सकता है। यही तादात्मय बच्चे के हित में है ।