टूटी अश्रुमाल पिरोती
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से ,
टूटी अश्रुमाल पिरोती॥
शीतनिशा में हर पात
झरा है
पीर का बिरवा भी हुआ हरा है ।
मन-आँगन में घना अँधेरा है
यह आश्वासन से कब
सँवरा है ॥
उपहास किया करते सब कि मैं केवल भार हूँ ढोती …
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से ,
टूटी अश्रुमाल पिरोती ।॥
वंदनवार प्रिये उर-
द्वार पड़े ।
कुछ बादल मन- नभ
पर उमड़े
नहीं घटा अब कोई भी
घुमड़े ॥
दावानल में लहराती बरसने का सभी सुख खोती।
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से ,टूटी
अश्रुमाल पिरोती॥
कब आना होगा अब
इस उपवन
उन्मुक्त लताओं
का मैं मधुवन।
नवपुष्प खिले, भौरों के गुंजन
सजेगा तुम- संग विकसित
यौवन॥
पथ में प्रिय पुष्प बिछाते,
पर विरहन काँटों में सोती।
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से,टूटी
अश्रुमाल पिरोती॥
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