पथ के साथी

Saturday, April 21, 2018

818


टूटी अश्रुमाल पिरोती
 डॉ०कविता भट्ट
क्षीण प्रतीक्षा के धागे ,अर्थहीन आशा के मोती  
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से , टूटी अश्रुमाल पिरोती॥
शीतनिशा में हर पात झरा है
पीर का बिरवा भी  हुआ हरा है ।
मन-आँगन में  घना अँधेरा है  
यह आश्वासन से कब सँवरा है
उपहास किया करते सब कि मैं केवल भार हूँ ढोती …
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से , टूटी अश्रुमाल पिरोती ।॥
थे उपहार लिये तुम हाथ खड़े
वंदनवार प्रिये उर- द्वार पड़े  
कुछ बादल मन- नभ पर उमड़े  
नहीं घटा अब कोई भी घुमड़े ॥

दावानल में लहराती बरसने का सभी सुख खोती।
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से ,टूटी अश्रुमाल पिरोती॥
कब आना होगा अब इस उपवन
उन्मुक्त लताओं का मैं मधुवन।
नवपुष्प खिले, भौरों के गुंजन
सजेगा तुम- संग विकसित यौवन॥

पथ में प्रिय पुष्प बिछाते, पर  विरहन काँटों में सोती।
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से,टूटी अश्रुमाल पिरोती॥
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817

खोया- खोया दिन रहा
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
खोया- खोया दिन रहा,आँसू भीगी रात।
पलभर को कब  हो सकी,अपनों से भी बात।।
2
बाहर छाया मौन था,भीतर हाहाकार ।
मन में रिसते घाव थे, हुआ नहीं उपचार।
3
कहने को तो भीड़ थी,आँगन तक में शोर।
मेरे अपने मौन थे,चला न उन पर जोर।।
4
नींद नहीं थी नैन में,सपने कोसों दूर।
मन की मन में ही रही,सब कुछ चकनाचूर।।
5
जीवन को बाँधे सदा, गहन प्रेम वह  डोर।
नेह भाव से हों पगे, जिसके दोनों छोर।।
6
तुम बिन बैरिन रात है,तुम बिन व्यर्थ विहान।
छुवन तुम्हारी जब मिले ,पूरे हों अरमान।।
7
खुशबू चारों ओर से,लेती मुझको घेर ।
तुम आए हो द्वार पर,लेकर आज सवेर।।
8
तेरे मन से जो जुड़े,मेरे मन के तार।
रहना होगा साथ ले, साँसों की पतवार।।
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