1-जल (चौपाई)
ज्योत्स्ना प्रदीप
कितना प्यारा निर्मल जल है
वर्तमान है ,इससे कल है ॥
घन का देखो मन उदार है
खुद मिट जाता जल अपार है ॥
ज्यों गुरु माता ज्ञान छात्र को
नदियाँ भरती सिन्धु-पात्र को ।।
सागर कितना तरल -सरल था
निज सीमा में इसका जल था।।
मानव की जो थी सौगातें
अब ना करती मीठी बातें
॥
सागर झरनें , नदी ,ताल ये
कभी सुनामी कभी काल ये ॥
दुख से भरती भोली अचला
कैसा जल ने चोला बदला ।।
धर्म -कर्म हम भुला रहे है
सुख अपनें खुद सुला रहे है।।
मिलकर सब ये काम करें हम
आओ इसका मान करे हम।।
जल को फिर से सुधा बनाओ
जल है जीवन , सुधा बचाओ
-0-