सत्या शर्मा ‘कीर्ति’
1- माफ करना माँ
सत्या शर्मा 'कीर्ति' |
पता है माँ
मेरी विदाई के वक्त
जो दी थी तुमने
अपनी उम्र भर की सीख
लपेटकर मेरे आँचल में ।
चौखट
लाँघते वक्त
मैंने टाँग दिया उसे
वहीं तेरी देहरी पर
गवाह है
नीम का वो चबूतरा
तेरी बेवसी और
ख़ामोशी का
इसलिए मैं
चुराकर ले आई
तेरे टूटे और बिखरे
ख़्वाब
जिसमें मैं प्रत्यारोपित
कर सकूँ
उम्मीदों और हसरतों
की टहनियाँ ।
ताकि जब
मेरी बेटी विदा हो
मैं बाँध सकूँ
उसके आँचल में
आत्मसम्मान का
हल्दी -कुमकुम ।।।
2- मैं हूँ आज की स्त्री
समस्त जगत का तेजपुंज
समेट अपने वजूद में
तोड़ने चक्रव्यूह तम का
मैं शक्ति बन आ रही हूँ ।
तेज समेटे रूद्र का
स्वरूप मुझमें ब्रह्म का
कालिमा युक्त संसार में
बन दामिनी मैं छा रही हूँ ।।
नहीं निर्भया नही सीता मैं
हूँ गायत्री और गीता मैं
काली का स्वरूप लिये
दुष्ट संहार करने आ रही हूँ
शक्ति हूँ और शिव भी मैं
सृष्टि हूँ और जीव भी मैं
अर्धनारीश्ववर का रूप लेकर
विश्व कल्याण करने आ रही हूँ ।।
3-मैं हूँ आज की स्त्री
मैं
ही शिव और शक्ति भी मैं
हूँ तेरे भावों की भक्ति भी मैं।
मृत्यु भी मैं..... जीवन भी मैं
नव कोंपल की सृजन भी मैं ।
है अनन्त .....की प्यास मुझमे
स्वास्तित्व पर विश्वास मुझमें।
तन मेरा कोमल भले लगता है
मन में शक्ति - स्रोत बहता है।
हूँ सिर्फ देह नहीं..न ही बेचारी हूँ
मैं सक्षम - सशक्त एक नारी हूँ।।
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