सत्या शर्मा ' कीर्ति '
1 - हम - तुम
सुनो ना ....
मेरे मन के
गीली मिट्टी
से बने
चूल्हे पर
पकता
हमारा- तुम्हारा
अधपका-सा प्यार
हर बार मुझे
एक नए
स्वाद से
भर देता है
पता है तुम्हें......
2
कभी - कभी
अपनी हसरतों को
टाँग देती हूँ
मन की खूँटी पे
और सींचती हूँ
उसे अपने
खूबसूरत सपनों से
अकसर देखती हूँ
उसमें अंकुरित होते
अपने अरमानों को
पुष्पित प्रेम की कलियों को
खोंस लेती हूँ
अपने अन्तर्मन के
गुलदस्ते में,
ताकि जब कभी आओ तुम
तुम्हें सौंप सकूँ
हमारे - तुम्हारे
अनकहे पलों के
बासंती रंग
3
हाँ
फिर आऊँगी
तुम्हारी यादों में
अपने दिल
के कमरे को
रखना तुम
खाली
सुनो! बाहर
शोर होगा
जमाने का
और
दुखों की तेज़
धूप में
पीले हो जाएँगे
हमारे रिश्ते के
कोमल पत्ते
पर फिर भी
आऊँगी तब
मेरी धड़कनों की
आहटों पर
तुम खोल देना
अपने मन में
चढ़ी वेदना की
साँकल को .....
-0-
फिर आऊँगी
तुम्हारी यादों में
अपने दिल
के कमरे को
रखना तुम
खाली
सुनो! बाहर
शोर होगा
जमाने का
और
दुखों की तेज़
धूप में
पीले हो जाएँगे
हमारे रिश्ते के
कोमल पत्ते
पर फिर भी
आऊँगी तब
मेरी धड़कनों की
आहटों पर
तुम खोल देना
अपने मन में
चढ़ी वेदना की
साँकल को .....
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