कमला निखुर्पा
मन में उमडी है
यादों की घटा
फिर तेरे नेह की आयी है याद माँ,
तेरे गोदी में मिला
बचपन को जो सुकून,
नहीं नसीब वो
वातानुकूलित कमरों में माँ |
जाने किस माटी से
गढा था विधाता ने ,
चैन से जीते तुझे देखा नहीं कभी माँ |
कब से गीले
बिछौने पे सोई रही माँ|
दुपहरी की धूप
में तन को जला के ,
चाँद की शीतलता
आँचल में भर लाई माँ |
समेट समंदर को अपनी
उनींदी आँखों में,
नित नेह की गंगा
में नहलाए मुझे माँ |
रिश्तों के वन
में भटका जीवन हिरन,
कस्तूरी बन फिर
से महका दो मुझे माँ |
कुट्टी कर आयी
हूँ खुशियों से अपनी ,
आँचल में अपने छुपा लो मुझे माँ |
दिला दे मुझे मेरी गुडिया और गुड्डा
फिर से नन्हीं
बच्ची बना दो मुझे माँ |