पथ के साथी

Thursday, June 26, 2014

कुछ कविताएँ



पुष्पा मेहरा      
1
 करौंदे की झाड़ी के इर्द-गिर्द
 लगी गुलाब की बाड़ से
 मैंने - हँसते गुलाब की
 एक टहनी तोड़ ली,
 उसने हँसते हुए अपना काँटा
 मेरी उँगली में चुभा दिया
 मैं दर्द से कराहती रही
 पर देखो तो ज़रा
 गुलाब है कि वह हँसता ही रहा ।
2
 सूनी गलियाँ-
 आज शोर भरी हैं
 ऊँघती हवाएँ  भी जाग उठी हैं
 सब तरफ़ सनसनी छाई है,
 कहीं कुछ तो घटा है !
3
 कौन कहता है !
 दीवार खड़ी करने से
 पानी की धाराएँ रुक जाती हैं
 वे तो अपनी झिरी पहले ही खोज लेती हैं ।
4
वक्त ख़ामोश था , बेख़ौफ़ था,
 साथ चलता रहा
 हसीन पलों को
छलता रहा ।
5
 वे जो पहाड़ हैं
 केवल पाषाण नहीं हैं
 उनके सीने में भी दिल है
 जिसमें  परमार्थ का दरिया बहता है
 और कोंपलें फूटती हैं ।
-0-
 पुष्पा मेहरा- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-100092